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कुमारसंभव
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एतन्धतमसं निरंकुशं दिक्षु दीर्घनयने विजृम्भते। 8/55 हे बड़ी-बड़ी आँखों वाली! अब यह घोर अंधेरा मनमाने ढंग से चारों ओर फैलता जा रहा है। आर्द्रकेशर सुगन्धित ते मुखं मत्तरक्तनयनं स्वभावतः। 8/76 तुम्हारी मतवाली आँखें भी स्वभाव से ही लाल हैं व तुम्हारे मुख में गीले केशर की सुगन्ध है। पूर्णमाननयनं स्खलत्कथं स्वेदबिन्दु मद कारण स्मितम्। 8/80 पार्वती जी की आँखें चंचलता से नाच रही थीं। मद के कारण मुँह से सीधी बोली नहीं निकल रही थी, मुँह पर पसीने की बूंदें झलक रही थीं और बिना बात के ही वे हँस पड़ती थीं। नेत्र :-[नयति नीयते वा अनेन- वी+ष्ट्रन] आँख, नेत्र, नयन। गुरूं नेत्र सहस्त्रेण नोदयमास वासवः। 2/29 इन्द्र ने अपने सहस्र नेत्रों को इस प्रकार चलाकर बृहस्पति जी को संकेत किया। पुष्पवास घूर्णित नेत्र शोभि प्रियामुखं कि पुरुषश्चुचुम्ब। 3/38 किन्नर अपनी उन प्रियाओं के मुख चूमने लगे, जिनके नेत्र फूलों की मदिरा से मतवाले होने के कारण बड़े लुभावने लग रहे थे। कपाल नेत्रान्तरलब्ध मार्गर्योतिः पुरोहैरुदितैः शिरस्तः। 3/49 उस समय उनके सिर की ओर के नेत्र से जो तेज निकल रहा था। तावत्स वह्निर्भवनेत्रजन्मा भस्माव शेष मदनं चकार। 3/72 इतनी देर में तो महादेव जी की आँखों से निकलने वाली आग ने कामदेव को जलाकर राख ही तो कर डाला। विजित्यनेत्र प्रतिघातिनी प्रभामन्यदृष्टिः सवितारमैक्षत। 5/20 चकाचौंध करने वाले सूर्य के प्रकाश को भी जीतकर, वे सूर्य की ओर एक टक होकर देखती रहने लगीं। अथो वयस्यां परिपार्श्ववर्तिनीं विवर्तितानञ्जननेत्रमैक्षत। 5/51 इसलिए अपने बिना काजल लगे नेत्र पास बैठी हुई सखी की ओर घुमाकर, उन्होंने उसे बोलने के लिए संकेत किया। त्रिभाग शेषासु निशासु च क्षणं निमील्य नेत्रे सहसा व्यबुध्यात। 5/57 रात के पहले ही पहर में क्षण भर के लिए आँख लगी नहीं, कि बिना बात के ये चौंककर बरबराती हुई जाग उठती थीं।
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