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कालिदास पर्याय कोश तथाहि शेषेन्द्रिय वृत्तिरासां सर्वात्मना चक्षुरिव प्रविष्य। 7/64 मानो उनकी सब इन्द्रियाँ आकर आँखों में ही समा गई हों। तथा प्रवृद्धाननचन्द्रकान्त्या प्रफुल्य चक्षुः कुमुदः कुमार्या। 7/74 चन्द्रमा के समान मुख वाली पार्वती जी को देखकर, शंकर जी के नेत्र रूपी कुमुद खिल गए। चक्षुरुन्मिषति सस्मितं प्रिये विद्यताहतमिव न्यमीलयत। 8/3 इतने में ही शिवजी मुस्कराकर आँखें खोल देते और ये चट इस फुर्ती से अपनी आँखें मींच लेती, मानो बिजली की चकाचौंध से आँखें मिच गई हों। आननेन न तु तावदीश्वरः चक्षुषा चिरमुमा मुखं पपौ। 8/80 पार्वती जी के उस मुख को भगवान् शंकर ने अपने मुँह से चूमा नहीं, वरन बहुत
देर तक अपनी आँख से ही उनकी सुन्दरता को पीते रहे। 3. नयन :- [नी+ल्युट] नेत्र, आँख।
स द्विनेत्रं हरेश्चक्षुः सहस्र नयनाधिकम्। 2/30 जिनके दो नेत्रों मे ही इन्द्र के सहस्र नेत्रों से बढ़कर देखने की शक्ति थी। मधुना सह सस्मितां कथां नयनोपान्त विलोकितं च तत्। 4/23 वसन्त के साथ हँस-हँस कर बातें करना और बीच-बीच में मेरी ओर तिरक्षी चितवन से देखना। यथातदीयैर्न यनैः कुतूहलात्पुरः सखीनाममिमीत लोचने। 5/15 अपनी सखियाँ के आगे उन्हें लाकर वे उन हरिणों के नेत्रों से अपने नेत्र मापा करती थीं। तस्याः सुजातोत्पल पत्र कान्ते प्रसीधिकाभिनयने निरीक्ष्य। 7/20 सिंगार करने वाली स्त्री ने पार्वती जी की नीले कमल जैसी बड़ी-बड़ी काली-काली आँख में। तमेकदृश्यं नयनैः पिबन्त्यो नार्यों न जग्मुर्विषयान्तराणि 17/64 नगर की स्त्रियाँ सब सुध-बुध भूलकर इस प्रकार एक टक देखती हुईं, उन्हें अपने नेत्रों से पी रही थीं। चुम्बनादलकचूर्णदूषितं शंकरोऽपि नयनं ललाटजम्। 8/19 इसी प्रकार चुम्बन लेते समय, जब पार्वती जी के केशों का चूर्ण झड़कर शिवजी के तीसरे नेत्र में पड़ता, तो वह नेत्र दुखने लगता।
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