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कालिदास पर्याय कोश
मारुते चलति चण्डिके बलाद् व्यज्यते विपरिवृत्तमंशुकम्। 8/71 पर वायु के चलने पर जब कपड़े हिलने लगते हैं, तब अपने आप पता चला
जाता है कि यह कपड़ा ही है। 2. कौशेय :-[कोशय विकारः-ढब्] रेशमी वस्त्र। निर्नाभि कौशेय मुपात्तबाणमभ्यङ्ग नेपथ्यमलंचकार। 7/7
उन्हें नाभि तक ऊँची रेशमी साड़ी पहनाकर उसमें एक बाण खोंस दिया गया। 3. क्षौम :-[क्षु+मन्+अण्] रेशमी कपड़ा, ऊनी कपड़ा।
नवं नवक्षौम निवासिनी सा भूयो बभौ दर्पणमादधना।7/26
नई साड़ी पहने हुए और हाथ में नये दर्पण लिए हुए वे ऐसे लगने लगीं। 4. दुकूल :-[दु+ऊलच्, कुक्] रेशमी वस्त्र।
वधू दुकूलं कल हंस लक्षणं गजाजिनं शोणित बिन्दु वर्षि च। 5/67 कहाँ वो हंस छपी हुई चुंदरी ओढ़ी हुई आप और कहाँ रक्त की बूंदे टपकाती हुई महादेवजी के कन्धे पर पड़ी हुई हाथी की खाल। उपान्त भागेषु च रोचनांको गजाजिनस्यैव दुकूल भावः। 7/32 हाथी का चर्म ही ऐसा रेशमी वस्त्र बन गया, जिसके आँचलों पर गोरोचना से हंस के जोड़े छपे हुए थे। स तद्कूल दविदूरमौलिर्बभौ पतद्गङ्ग इवोत्तमाङ्गे। 7/41 उस समय शिवजी के सिर के पास छत्र से लटकता हुआ कपड़ा ऐसा जान पड़ता था, मानो गंगाजी की धारा ही गिर रही हो। तहुकूलमथ चा भवत्स्वयं दूरमुच्छ्वसितनीबिबन्धनम्। 8/4
पर न जाने कैसे इनकी साड़ी की गाँठ ढीली पड़कर अपने आप खुल जाती। 5. वस्त्र :-[वस्+ष्ट्रन्] परिधान, कपड़ा, कपड़े, वेशभूषा, पोशाक, पहनावा
सा मंगल स्नान विशुद्ध गात्री गृहीत पत्युद्गमनीय वस्त्रा। 7/11 मंगल स्नान करने से पार्वती जी का शरीर अत्यंत निर्मल हो गया और उन्होंने विवाह के वस्त्र पहन लिए। वास :-[वास+घञ्] सुगंध, निवास, जगह, कपड़े, पोशाक। आवर्जिता किंचिदिव स्तनाभ्यां वासो वसाना तरुणार्करागम्। 3/54 स्तनों के बोझ से झुके हुए शरीर पर प्रात:काल के सूर्य के समान लाल-लाल कपड़े पहने हुए।
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