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कालिदास पर्याय कोश
14. सह धर्मचारिणी :-पत्नी।
दक्षिणेतरभुजव्यपाश्रयां व्याजहार सहधर्मचारिणीम्। 8/29 उसे देखकर अपनी बाईं भुजा के सहारे बैठी हुई, अपनी धर्म पत्नी से महादेव
जी बोले। 15. स्त्री :- [स्त्यायेते शुक्रशोणिते यस्याम् स्तो+ड्रप्+ङीप्] नारी, औरत। बिभेतु मोधीकृत बाहुवीर्यः स्त्रीभ्योऽपि कोपिस्स्फुरिताऽधराभ्यः। 3/9 जो मेरे बाणों की मार से ऐसा शक्तिहीन हो जाना चाहता है कि क्रोध में काँपते हुए ओठों वाली नारी तक उसे डरा दे। तदिदं गतमीदृशीं दशां न विदीर्ये कठिनाः खलु स्त्रियः। 4/6 उसे इस दशा में देखकर भी मेरी छाती फट नहीं गई। सचमुच स्त्रियों का हृदय बड़ा कठोर होता है।
अंशु 1. अंशु :-[अंश+कु] किरण, प्रकाश-किरण।
उन्मीलितां तूलिकयेव चित्रं सूर्यांशुभिभिन्नमिवारविन्दम्। 1/32 जैसे कूँची से ठीक-ठीक रंग भरने पर चित्र खिल उठता है और सूर्य की किरणों का परस पाकर कमल का फूल हँस उठता है। अथ मौलिगतस्येन्दोर्विशदैर्दशनांशुभिः।। 6/25 अपनी मंद हँसी के कारण चमकते हुए दाँतों की दमक से। हारयिष्ट रचनामिवांशुभिः कर्तुमागत कुतूहल: शशी। 8/68
मानो चन्द्रमा अपनी किरणों से कल्पवृक्षों में चन्द्रहार बनाने आ पहुँचा हो। 2. किरण :-[कृ+क्यु] प्रकाश की किरण ; सूर्य, चंद्रमा की किरण।
शशिन इव दिवातनस्य लेखा किरण परिक्षत धूसरा प्रदोषम्। 4/46 जैसे दिन में दिखाई देने वाले निस्तेज चन्द्रमा की किरण साँझ होने की बाट जोहती है। भानुमग्नि परिकीर्ण तेजसं संस्रुवन्ति किरणोष्मपायिनः। 8/41 किरणों की गर्मी पी जाने वाले ऋषि उस सूर्य की स्तुति कर रहे हैं, जिन्होंने इस
समय अपना तेज अग्नि को सौंप दिया है। 3. ज्योति :-[द्योतते द्युत्यते वा-द्युत्+इसुन् दस्यजादेशः] प्रकाश, प्रभा चमक।
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