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[जवाहर-किरणावली
का कारण कह देंगे तो आपका अाधा दुःख कम हो जायगा।
महार:ज-तुम्हारी इच्छा है तो सुन लो । इस समय सारी प्रजा महामारी की बीमारी से पीड़ित है । मुझसे ही कोई अपराध बन गया है, जिसके कारण प्रजा को कष्ट भुगतना पड़ रहा है । ऐसा न होता तो मेरे सामने प्रजा क्यों दुखी होती? __ महारानी-जिस पाप के कारण प्रजा दुःख पा रही है, वह आपका ही नहीं है, मेरा भी है।
महारानी की यह बात सुनकर महाराज को आश्चर्य हुआ। फिर उन्होंने कुछ सोचकर कहा-ठीक है । आप प्रजा की माता हैं । आपका ऐसा सोचना ठीक ही है। मगर विचारणीय. बात तो यह है कि यह दुःख किस प्रकार दूर किया जाय ?
महारानी-पहले आप भोजन कर लीजिए । कोई न कोई उपाय निकलेगा ही।
महाराज-मैं प्रतिज्ञा कर चुका हूँ कि जब तक प्रजा का दुःख दूर न होगा, मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।
महारानी-जिस नरेश में इतनी दृढ़ता है, जो प्रजाहित के लिए प्रात्मबलिदान करने को उद्यत है, उसकी प्रजा कदापि दुखी नहीं रह सकती। लेकिन जब तक आप भोजन नहीं कर लेते, मैं भी भोजन नहीं कर सकती।
महाराज-तुम अगर स्वतंत्र होती और भोजन न करतीं, तय तो कोई बात ही नहीं थी। लेकिन तुम गर्भवती हो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com