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• बीकानेर के व्याख्यान ]
[२५.
पूछा । महारानी ने कहा-आप आज अभी तक भोजन करने नहीं पधारे । इसका क्या कारण है ?
महाराज सोचने लगे-जिस उपद्रव को में दूर नहीं कर सकता, उसे महारानी स्त्री होकर कैसे दूर कर सकती हैं ? फिर अपनी चिन्ता का कारण कह कर इन्हें दुखी करने से क्या लाभ है ? इस प्रकार विचार कर वह चुप ही रहे । कुछ न वोले। ___पति को मौन देख महारानी ने कहा-जान पड़ता है,
आप किसी ऐसी चिन्ता में डूबे हैं, जिसे सुनने के लिए मैं अयोग्य हूँ। संभवतः इसी कारण आप बात छिपा रहे हैं। यदि मेरा अनुमान सत्य है तो आज्ञा दीजिए कि मैं यहाँ से टल जाऊँ : ऐसा न हो तो कृपया अपनी चिन्ता का कारण बतलाइए। आपकी पत्नी होने के कारण आपके हर्ष-शोक में समान रूप से भाग लेना मेरा कर्तव्य है।
महाराज अश्वसेन ने कहा-मेरे पास कोई चीज़ नहीं है जो तुम से छिपाने योग्य हो । मैं ऐसा पति नहीं कि अपनी पन्नी से किसी प्रकार का दुराव रकव । मगर मैं सोचता हूँ कि मेरी चिन्ता का कारण सुन लेने से मेरी चिन्ता तो दूर होगी नहीं तुम्हें भी चिन्ता हो जायगी । इससे लाभ क्या होगा?
महारानी---अगर वात कहने से दुःख नहीं मिटेगा तो उदास होने से भी नहीं मिटेगा । इस समय सारा दुःख आप उठा रहे हैं, लेकिन जब आप, अपनी इस अर्धांगिनी से दुःख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com