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[ जवाहर - किरणावली
लड़कियाँ थीं और एक लड़का था । लड़कियों के उसने मनचाहे रुपये लिये । यही नहीं वरन् किसी-किसी लड़की की सगाई एक जगह करके छोड़ दी और फिर दूसरी जगह की । इतना करने पर भी उसकी दरिद्रता दूर नहीं हुई और न उसके लड़के का ही विवाह हुआ । उसके वंश का नाश हो
गया ।
मतलब यह है कि प्रकृति के नियमों को तोड़कर रुपये के लोभ में पड़कर नवयुवती कन्या को बूढ़े के हवाले कर देना या अयोग्य धनवान् को लड़की देकर योग्य धनहीन को बंचित रखना योग्य नहीं है । भगवान् ने तो दासी बेचने को भी बड़ा पाप कहा है, फिर कन्या को बेच देना कितना बड़ा पाप न होगा !
महारानी अचला को बाल्यास्था से ही सुन्दर संस्कार मिले थे । वह अपने पत्नीधर्म को भलीभाँति समझती थीं । इस कारण वह भोजन किये विना ही महाराज अश्वसेन के समीप पहुँचीं। वहाँ जाकर देखा कि महाराज अश्वसेन गंभीर मुद्रा धारण करके ध्यान में लीन हैं। महारानी ने हाथ जोड़कर धीमे और मधुर किन्तु गंभीर स्वर में महाराज का ध्यान भंग करने का प्रयत्न किया । महारानी का गंभीर स्वर सुनकर महाराज का ध्यान टूटा । उन्होंने आँख खोलकर देखा तो सामने महारानी हाथ जोड़ खड़ी नज़र आई। महाराज ने इस प्रकार खड़ी रहने और ध्यान भंग करने का कारण
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