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श्री जैज दिवाकर स्मृति-ग्रन्य।
एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ३८ :
नवकार मन्त्र जपने लगे, सामायिक-प्रतिक्रमण आदि भी करने लगे। हिंसा आदि कृत्य तथा मांसमदिरा आदि का त्याग कर दिया। आज भी अनेक परिवार मांस-मदिरा आदि के पूर्ण त्यागी हैं। जैनधर्मानुसार धर्माराधना करते हैं और बहुत सुखी हैं । धर्म में दृढ़ श्रद्धालु हैं।
उसी समय उज्जैन के सरसूबा बालमुकुन्द जी मैया साहब राज्य-कार्य से वहाँ आए। एक दिन वे आपके प्रवचन में उपस्थित हए । दर्शन-वन्दन करके बहुत प्रसन्नता व्यक्त की। महाराजश्री ने उनको प्रेरित करते हुए कहा
"आप तो राज्याधिकारी हैं। वाणी द्वारा ही बहुत पुण्य का उपार्जन कर सकते है। उज्जैन परगना में अनेक देवी-देवताओं के धाम हैं। उन स्थानों पर जो हिंसा होती है, उसे आप बन्द करा दें तो बहुत उत्तम हो।"
बालमुकुन्द जी भैया साहब ने आपकी इच्छा स्वीकार की और पूरा-पूरा प्रयास करने का वचन दिया।
गंगापुर से विहार कर आपश्री रास्मी पधारे। वहाँ कई जातियों के लोगों ने अभक्ष्य आहार का त्याग किया। एक देवी के समक्ष प्रतिवर्ष एक भैसे का वध किया जाता था, उसे भी बन्द कर दिया।
रास्मी से विहार करके आपश्री पोटला पधारे । वहाँ आपके प्रभाव से माहेश्वरियों में फैले कुसंप की समाप्ति हो गई। वहाँ से कोसीथल, रायपुर, मोखणदा आदि स्थानों पर लोगों को कल्याण-पथ पर अग्रसर करते हए आमेट पधारे।।
मार्ग में अरणोदा के ठाकूर साहब हिम्मतसिंहजी ने जीवन-भर के लिए शिकार खेलने का त्याग कर दिया। कोसीथल के ठाकुर साहब श्रीमान् पद्मसिंह जी ने वैशाख, श्रावण और भाद्रपदइन तीन महीनों में शिकार न खेलने का नियम लिया। साथ ही उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री जुवानसिंह जी ने वैशाख और भाद्रपद मास में शिकार न खेलने की प्रतिज्ञा ली।
आमेट के राव श्रीमान शिवनाथ सिंहजी आपके दर्शन हेतु आए। व्याख्यान राव साहब के महल के सामने विशाल मैदान में हआ। महावीर जयन्ती का महोत्सव बड़े समारोहपूर्वक उत्साह के साथ मनाया गया।
वहाँ से विहार करके चारभुजाजी, घाणेराव, सादड़ी आदि अनेक स्थानों पर होते हुए आबूरोड पधारे । वहाँ पालणपुर का श्रीसंघ आ पहुँचा और भक्तिपूर्वक आपश्री को पालनपुर ले गया।
पालणपूर में आप पीताम्बर भाई की धर्मशाला में ठहरे। प्रवचन गंगा बहने लगी। पालणपुर के नवाब साहब शेर मुहम्मद खाँ बहादुर को पता चला तो एक हाफिज और एक हिन्दू पंडित के साथ वे व्याख्यान सूनने आये । सारभित व्याख्यान सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। थोड़ी देर तत्त्व-चर्चा भी की। जाते-जाते उन्हें एक ज्ञान-पेटी दिखाई दे गई। उसमें चालीस रुपये डाले। नवाब साहब की इच्छा तो प्रतिदिन व्याख्यान सुनने की थी लेकिन वृद्धावस्था के कारण शरीर से विवश थे, प्रतिदिन नहीं आ पाते थे।
मन्दसौर से तार द्वारा समाचार मिला कि बड़े महाराज श्री जवाहरलालजी महाराज का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। आपने एकदम विहार कर दिया। लेकिन आबरोड के पास पहुँचने पर बड़े महाराजश्री के स्वर्गवास का समाचार मिला। आप पुनः पालणपुर वापिस आ गए।
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