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: ७५ : उदय : धर्म - दिवाकर का
पुण्यलाभ या मर्यादा पालन
ब्यावर चातुर्मास की ही घटना है। एक दिन एक तेरापंथी धावक ने आपके पास आकर एक कुटिल प्रश्न किया
श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
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"महाराज ! आप तो पुण्य का बहुत उपदेश देते हो । फिर अपने पात्र में से किसी विसंमोगी याचक को अन्न-जल आदि देकर पुण्यलाभ क्यों नहीं करते ?"
श्री जैनदिवाकरजी उस श्रावक की कुटिलता समझ गए । आपने उससे प्रतिप्रश्न
किया
"श्रावकजी ! पहले तो आप एक बात बताइये, यदि कोई साधु-साध्वी आपके आचार्य कालूगणी के दर्शन करे तो उसे पुण्य होगा या पाप ?"
"पुष्प ही होगा ।"
"तो फिर बरसात के महीनों में विहार कर या वाहनों का प्रयोग करके वे अधिकाधिक और शीघ्रातिशीघ्र पुण्यलाभ क्यों नहीं करते ?"
"यह तो मर्यादा है ।"
"क्या मर्यादा का महत्व पुण्यलाभ से अधिक है ?"
"हाँ महाराज ! मर्यादा सर्वोपरि है। उसका पालन अवश्य होना चाहिए। मर्यादा पर ही तो जिनशासन टिका हुआ है।" धावक ने मर्यादा का महत्व स्वीकार कर लिया । अब आपने उस धावक के मूल प्रश्न का उत्तर दिया
"श्रावकजी ! आप स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर दे चुके हैं। पुण्यलाभ से बढ़कर आपने मर्यादा को बताया है। भूसे को अन्न-जल देने से पुण्यलाभ तो होता है, लेकिन यह साधु-मर्यादा के विपरीत है ।"
श्रावकजी निरुत्तर हो गए ।
चातुर्मास पूर्ण होने के बाद आप जैन गुरुकुल ब्यावर में पधारे साथ में पंडित मुनि श्री मणिलालजी भी थे । गुरुदेव ने ब्रह्मचारियों को सारगर्भित उपदेश दिया । धर्मशास्त्र की परीक्षा ली और संतोष प्रगट किया ।
जब आप बदनौर पधारे तो सरकारी स्कूल में आपके प्रवचन होने लगे। चौथे दिन वहाँ के ठाकुर साहब सुनने आए । महल में भी व्याख्यान देने की प्रार्थना की जिससे रानियाँ भी लाभान्वित हो सके महल में प्रवचन हुआ। आपके प्रवचन से प्रभावित होकर सदा से होने वाली पाड़ा (भैंस का बच्चा) की बलि को तुरन्त बन्द करवा दिया गया। ठाकुर साहब ने पुनः एक व्याख्यान सुना तथा अभयदान का पट्टा लिखकर दिया ।
आप उदयपुर पधारे तो महाराणा ने अगता पलवाया, प्रवचन सुना और चातुर्मास वहीं करने की प्रार्थना की।
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उन्तालीसवां चातुर्मास (सं० १९९१) उदयपुर
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सं० १९९१ का चातुर्मास उदयपुर में घंटाघर के निकट बनेड़ा नरेश की हवेली में हो रहा था। उदयपुर के महाराणा ने भी कई बार आपके प्रवचनों का लाभ उठाया। तपस्वी छोटेलालजी महाराज की तपस्या के पारणे के दिन सारे नगर में अगता पलवाया गया और सैकड़ों बकरों को अभयदान मिला ।
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