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श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।।
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २२२ :
साधु वही धन्य है जो कर्तरिका (कैची) के समान समाज को छिन्न-भिन्न न कर सूचिका (सुई) के समान जोड़ने का काम करता है। जैसे-'मारने वाले से बचाने वाला महान् है', उसीप्रकार तोड़ने वाले से जोड़नेवाला महान् है।' महाराजश्री इसके आदर्श उदाहरण थे। वे अत्यन्त सहृदय और उदार थे। करुणा उनके रोम-रोम से टपकती थी। उन्हें देखकर और सुनकर ऐसा मालूम पड़ता था मानो सर्वधर्मसमन्वयात्मक अनेकान्त का मूर्तिमान रूप हो ।
ल) दिवाकर
* मोतीलाल जैन कोटा मानव मानव में भेद नहीं, करते थे जैन दिवाकर । कोटि-कोटि वन्दन है तुमको, जगवल्लभ जैन दिवाकर ।१। मानवता के अमर पुजारी, धन्य धरा हुई तुमको पाकर । श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ तुमको, जगदवल्लभ जैन दिवाकर ।२। काम-क्रोध-मद-लोभ न जिनको, सत्य-अहिंसा-अमरपुजारी। वीतराग ! वंदन है तुमको, हे ! अखण्ड महाव्रतधारी ।। धन मालव, धन राजपूताना, पावन-पद-परसे मुनीश । अगता पाले हुक्म निकाले, नतमस्तक हुए अवनीश ।४। जीवनदान दिलाया तुमने, हिंसा के प्रबल तूफानों में। ऊँच-नीच का भेद न पाया, तेरे पावन अरमानों में ।। विश्व-बन्धु ! हे महामानव ! भव-तिमिर के तुम हो प्रभाकर। कोटि-कोटि वंदन हम करते, जगद्वल्लभ जैन दिवाकर।६। धन्य धरा तट चम्बल जिस पर, मुनि का हुआ महाप्रयाण । पावन तीर्थ बना है कोटा, अभ्यागत सब करते बखान ।७। बर्ष सप्ताधिक सहस्रद्वय, चतुर्मास कोटा अनुकूल । तेरे पावन पद की रज से, रोग भयंकर हुआ निर्मूल ।। काती सुद तेरस के दिन, तिमंजिल से गिरा शिशु जवाहर । गुरु-चरणों में हंसता पाया, मोती ने लाल जवाहर ।। संघ ऐक्य के प्रेरक बन कर, पावन ध्येय फैलाया। करी प्रशस्ति सकल संघों ने, मिलकर श्रमण संघ बनाया ॥१०॥ रवि में जन्मे रवि में दीक्षित, रवि समाधिस्थ जैन दिवाकर । अमर रहे यश-गाथा तेरी, जब लग चमकें चन्द्र-दिवाकर ॥११॥
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