Book Title: Jain Divakar Smruti Granth
Author(s): Kevalmuni
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 666
________________ : ५६७ : उदार सहयोगियों की सूची । श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । सेठ श्री भूरचन्द जी मीठालाल जी बाफना, तिरुकोइलर सेठ श्री भूरचंदजी बाफना राजस्थान में आगेवा (मारवाड़) के निवासी हैं। अभी आप तिरुकोइलर नगर (तामिलनाडु) में व्यवसाय करत लनाडु) में व्यवसाय करते हैं । आप उदार हृदय वाले धर्मप्रेमी, संतों के भक्त और श्रद्धालु सज्जन हैं । सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में बड़ी दिलचस्पी रखते हैं। आपके सुपुत्र श्री मीठालालजी बड़े ही उत्साही और धर्म कार्यों में रस लेने वाले युवक है । श्री रमेशकुमार और आनन्दकुमार दोनों बालक (श्री भूरचन्दजी के पौत्र) आपके पुत्र, हैं जो छोटी आयु में ही बड़े संस्कारी और संत प्रेमी है । आपकी पोती विजय कुमारी भी संस्कारी है। बालकों की माताजी भी अच्छे गुणों वाली है। श्रीमान रतनलाल जी मारु, मदनगंज उदार हृदय श्री रतनलालजी मारु का जन्म वि. सं. १९८० मिगसर वदि १३ नरवर ग्राम में श्री भंवरलाल जी मारू के घर पर हुआ। आपकी माताजी श्रीमती गोपीदेवी भी बड़ी धार्मिक विचारों वाली सरलता व सादगी वाली महिला थी। श्री रतनलाल जी की दान में विशेष रुचि है। सेवा, शिक्षा, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में आप धन का सदुपयोग करते रहते हैं। स्वभाव से अत्यन्त सरल, सादगी पूर्ण जीवन और धार्मिक प्रवृत्तियों में रुचिशील श्री मारु जी स्थानीय जैन समाज के विशिष्ट व्यक्ति है। आपका बीड़ी का व्यवसाय है। आप तीन माई तथा तीन बहनें हैं। सभी गुरुदेवश्री के भक्त हैं। श्रीमान छगनलाल जी गोठी, मद्रास मौन भाव से समाज सेवा करना तथा जीवन को सादा धर्म मय बनाये रखना-यही उद्देश्य है श्री छगनलाल जी गोठी के जीवन का। आपके पिताजी श्री बालचन्दजी गोठी भी बड़े ही धार्मिक व सुसंस्कारी थे। आप तीन भाई हैं जिनमें द्वितीय क्रम आपका है। आपने कुछ वर्षों तक जयपुर में जवाहरात का व्यवसाय किया। फिर करीब १२ वर्ष तक वर्मा के रंगून शहर में जवाहरात का व्यापार किया और अच्छी सफलता प्राप्त की । अभी काफी समय से साहूकार पेठ (मद्रास शहर) में 'शांति डायमंड' नाम से आपका जवाहरात का अच्छा व्यवसाय है। आप स्वभाव से बड़े ही सरल, विनम्र और मिलनसार हैं। साधु-सन्तों के प्रति अच्छा प्रेम व मक्ति रखते हैं। समाज के कार्यों में समय-समय पर उदारमन से सहयोग करते हैं। कविरत्न श्री केवल मुनिजी महाराज के प्रति आपकी विशेष भक्ति-भावना है। स्व० सेठ तेजमलजी पुसालाल जी रुणवाल, बीजापुर स्व० श्रीमान तेजमल जी रुणवाल का जन्म २०-१-१६०३ को हुआ। आप बड़े ही धर्मप्रेमी, सादगीप्रिय तथा साधु-सन्तों के भक्त थे। धार्मिक सामाजिक कार्यों में उत्साह रखते थे। दिनांक २१-१-१६७४ को आपका स्वर्गवास हो गया। आपनी धर्मपत्नी श्रीमती रुक्माबाई तेजमल जी बड़ी धर्मशीला, सरल स्वभावी हैं । आपकी सरलता-उदारता व प्रेम-भावना के कारण इतना बड़ा परिवार आज भी प्रेम व स्नेह के सूत्र में बँधा हुआ एक आदर्श परिवार बना हुआ है। श्रीमान तेजमल जी वे क्रमश: पांच पुत्र हैं (१) श्री खेमचन्द जी, (२) उदेराज जी (३) अमृतलाल जी, (४) गणपतलालजी, (५) जवाहरलाल जी। तीन पुत्रियां हैं जिनका विवाह हो गया है। सभी सुखी हैं। सब में धर्म की लागणी अच्छी है तथा मानव-प्रेम एवं व्यवहार शुद्धि की तरफ विशेष भावना रखते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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