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: २७५ : एक पारस-पुरुष : श्री जैन दिवाकरजी
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ॥
जैन दिवाकरजी महाराज ओजस्वी वक्ता भी थे । वाणी का चमत्कार उनके व्यक्तित्व की एक अन्यतम विशेषता थी। उनकी वाणी में, वस्तुत: एक अद्भुत-अपूर्व पारस-स्पर्श था, जो लौहचित्त को भी कान्ति और दीप्ति से झिलमला देता था। उनकी प्रवचन-पीयूषधारा हजार-हजार धाराओं में प्रवाहित हुई थी। राजा-महाराजाओं से लेकर मजदूरों के झोंपड़ों तक उनकी कल्याणकर वाणी पहुंची थी और उसने अन्धेरे में रोशनी पहुँचाई थी। उनकी भाषा में मधुराई थी, मंजुल
और प्रभविष्ण मुखाकृति के कारण वे जहां भी गये सहस्र-सहस्र जनमेदिनी ने उनका अभिनन्दन किया, अपने पलक-पांवड़े बिछा दिये। कई राजाओं ने उनके प्रवचन सुनकर अपनी-अपनी राज्यसीमाओं में हिंसा रोकने का प्रयत्न किया। उनकी वत्सलता बड़ी वरदानी थी, इसीलिए अछुतों को गले लगाकर, जैनधर्म में उन्हें प्रवेश देकर उन्होंने एक ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किया। यह था उनके पतितपावन व्यक्तित्व का प्रभाव।
उनकी साहित्य-साधना भी अनठी थी । दिवाकर-साहित्य में से काव्य-साहित्य खूब लोकप्रिय हआ। जनता-जनार्दन के कण्ठ में आज भी उसकी अनुगूज है।
__मैंने मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब जैसे सुदूदवर्ती प्रदेशों में भी विहार किया। वहाँ भी स्थान-स्थान पर उनकी कीति-कथाएँ सुनीं। मेरे खयाल से उनके जीवन की सब में बड़ी उपलब्धि एक यह भी है कि मैंने उनके विषय में कोई अपवाद नहीं सुना।
जब मैंने कोटा में उनके देहावसान का दुःखद संवाद सना, तब मेरे मन को गहन चोट लगी। शीघ्र ही हम सब न्यावर में पुन: एकत्रित हए। आचार्य होने के नाते मेरी उपस्थिति लगभग अपरिहार्य थी। उनके प्रति मेरी अगाध श्रद्धा है। जब मैं कोटा गया तब उनकी पुण्य-पुनीत स्मृति में 'दिवाकर जैन विद्यालय' चलाने की प्रेरणा देकर आया था। विद्यालय मेरी उपस्थिति में ही खुल गया था, प्रसन्नता है कि वह विकासोन्मुख है और आवश्यक उन्नति कर रहा है।
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जगत के खेल में
(तर्ज-सयाल की) थारो नरभव निष्फल, जाय जगत के खेल में ।। टेर । सुन्दर के संग सैज में सोवे, रात दिवस तू महल में। इत्तर लगावे पेच झुकावे, जावे शाम को सैल में ।। १।। कंठी डोरा डाल गले में, बैठे मोटर रेल में। मौत पकड़ ले जावे तुझको, हवा लगे ज्यू पेल में ।। २ ।। कसूमल पाग केशरिया बागा, पटा चमेली तेल में। काम अन्ध घूमे गलियों में, होय छवीलो छेल में ॥ ३ ।। धर्म करेगा तो मोक्ष वरेगा, बदी चौरासी जेल में।। चौथमल हित शिक्षा दीनी, इन्दौर आलीजा शहर में ।। ४ ।।
-जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज
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