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: २६३ : समाज सुधार के अग्रदूत"
| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
नासिक से कुछ दूर, सड़क के किनारे एक छोटे-से मकान में एक अत्यन्त फटेहाल जैन परिवार रहता था। उसकी दयनीय दशा देखकर आपश्री चपचाप नहीं बैठे । नासिक पहुंच कर अहमदनगर निवासी श्री ढोढीरामजी को स्वधर्मी की करुण-दशा का चित्रण करके पत्र द्वारा सूचित किया। उन्होंने अपना मुनीम तुरन्त भेजा। उन्होंने अहमदनगर चातुर्मास में आपके समक्ष प्रतिज्ञा ली थी कि मैं अब मौसर (मृतक-मोज) नहीं करूंगा तथा ५ हजार का फंड साधर्मी-सहायता के लिए करता हूँ; उसमें से उक्त भाई को जीवन-साधन देकर आश्वस्त किया।
यह था समाज के उपेक्षित एवं असहाय व्यक्तियों के लिए सहायता की प्रेरणा देकर समाज को अधामिक एवं निष्ठर होने से बचाने का दीर्घदर्शी सत्प्रयत्न !
शासकों के जीवन का सुधार प्राचीन काल में शासक समाज-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भाग अदा करता था। 'राजा कालस्य कारणं' यह उक्ति शासक की युग निर्मात्री शक्ति की परिचायिका है। शासक उस युग में समाज का नेता माना जाता था। अगर शासक का जीवन धर्ममय एवं नैतिक न हो, तो जनता पर भी उसका गहरा और शीघ्र प्रभाव पड़ता था। इस बात को मद्दे नजर रखकर जैन दिवाकरजी महाराज ने उस समय के अधिकांश शासकों की रीति-नीति, परम्परा और व्यसन-परायण जिंदगी को बदलने का निश्चय किया। प्रायः शासकों के जीवन में मांसाहार, शिकार, सरा और सन्दरी आदि दुर्व्यसन प्रविष्ट हो चुके थे।
आपने जगह-जगह शासकों को अपनी वक्तृत्वशक्ति के बल पर धर्म, साधुसंत और परमात्मा के प्रति श्रद्धालु बनाया, उनके जीवन को नया मोड़ दिया। उनके जीवन में अहिंसा की लहर व्याप्त की। उनसे त्याग (हिंसा त्याग, व्यसन त्याग आदि) की भेंट स्वीकार की। फलतः मेवाड़ के महाराणाओं से लेकर मारवाड़, मालवा आदि के छोटे-बड़े राजा, राव, रावत, ठाकुर, जागीरदार आदि तक आपका पुण्यप्रभाव बढ़ गया। उनमें इतनी जागति आ गई कि उनकी विलासिता एवं ऐय्याशी काफूर हो गई । सुरा-सुन्दरी, शिकार और मांसाहार के दुर्व्यसनों को उन्होंने तिलांजलि दे दी और जनता की सेवा के दायित्व की ओर ध्यान देने लगे । जनता की चिकित्सा, शिक्षा, न्याय, आवास, अन्नवस्त्र आदि समस्याओं को सुलझाने में लग गए ।'जैन दिवाकरजी महाराज ने स्वयं कष्ट (परिषद) सहकर भी शासकों के जीवन-सुधार के लिए अथक प्रयास किया। वास्तव में आपने समाज के उस युग में माने जाने वाले अग्रगण्यों को सुधार कर समाज को काफी अंशों में पतन और दूषणों से बचा लिया। आपकी इस महती कृपा के लिए समाज युगों-युगों तक आपका चिरऋणी रहेगा।
आपके उपदेशों में समाज को बदलने की महान शक्ति सचमच आपके उपदेशों में समाज की कायापलट करने की महान शक्ति थी। मेघ की शीतल-सौम्य जलधारा की तरह आपकी पतितपावनी समाज-स्वच्छकारिणी वचनधारा झोंपड़ी से लेकर महलों तक बिना किसी भेदभाव के सर्वत्र समान भाव से बरसती थी। आप जहाँ राजा-महाराजाओं और शासकों का ध्यान उनकी बुराइयों की ओर खींचते थे, वहाँ पतितों, पददलितों, उपेक्षितों एवं पिछड़े लोगों को भी उनमें व्याप्त अनिष्टों की ओर से हटाकर नया शुद्ध मोड़ देते थे।
१ 'आदर्श उपकार' पुस्तक में इसका विस्तृत वर्णन पढ़िए
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