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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
श्री जैन दिवाकरजी के प्रिय पद्य : ४३२ :
ठाम ठाम सूत्रों में नाम तेरा आवे, स्वामी " चार ज्ञान पूरबधर, सुरनर गुण गावे | २ | महावीर से गुरु तुम्हारे, जग तारण हारे, स्वामी " सब मुनियों में शिरोमणि, गणधर तुम प्यारे | ३| भव्य हितार्थ तुमने किया निर्णय भारी, स्वामी" पूछे प्रश्न अनेकों, निज आतम तारी ॥४॥ गौतम - गौतम जाप जपे से, दुःख दरिद्र जावे, स्वामी सुख सम्पत्ति यश लक्ष्मी अनायास आवे | ५ | भूत-प्रेत भय नाश, गौतम ध्यान धरे. स्वामी चोट फेंट नहीं लागे, सब दुःख दूर हरे |६| दो हजार साल के सादड़ी, सेखे काल आया, स्वामी गजानन्द आनन्द करो, यूँ, चौथमल गाया |७| ७. नेत्रादर्श
(तर्ज-लावणी छोटी बड़ी )
नयनन में पुतली लड़े भेद नहीं पावे | कोई सच्चा गुरु का, चेला बना छन्द गावे ॥टेर ||
ये प्रीति नीति रस
है शक्ति हटोटी
इस मन के तच्छन लच्छन सब नयनन में । यह नेकी बदी के दोनों दीप नयनन में ॥ ये योगी भोगी की मुद्रा है नैनन में । और खुशी गमी की पहिचान है नैनन में ॥ ये करे लाखों में चोट चूक नहीं जावे ॥ १ ॥ ये काम-क्रोध दोनों जालिम नैनन में । दोनों बसे नैनन में ॥ बदकारी नैनन में । ये लिहाज नम्रता सभी बसे नैनन में ॥ नैनन के बस हो प्राण पतंग गमावे ॥ २ ॥ ये शूरवीर के तोड़ दीखे नैनन से | और सुगडाई के अक्षर मिले नैनन से | अष्टादश देश की लिपी लिखे नैनन से । और वरणादिक की खास विषय नैनन से ॥ विष अमृत ये दोनों नैन में रहावे || ३ || मुनि की मुद्रा का दरस करें नैनन से और पांव धरे जीवों को टाल नैनन से ॥
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