Book Title: Jain Divakar Smruti Granth
Author(s): Kevalmuni
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 650
________________ : ५८७ : उदार सहयोगियों की सूची || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ | श्रीमान केसरसिंहजी खमेसरा व उनकी धर्मपत्नी सौ० पदमबाई उदयपुर श्री केसरसिंह जी ने धर्मप्रेमी स्व० श्रीयुत भूरालालजी सा० खमेसरा की धर्मपत्नी स्व० नाथबाई की कोख से सन् १९१२ में उदयपुर शहर में जन्म लिया। विद्याध्ययन के बाद आप रेलवे सेवा में आये, जहाँ करीब ३८ वर्ष तक स्टेशन मास्टर पद पर उदयपुर, चित्तौड़गढ़, पालनपुर, कान्डला पोर्ट, ब्यावर, सोजतरोड आदि स्टेशनों पर कार्य करते रहे । सौ० पदमबाई धर्मप्रेमी श्रद्धालु स्व० श्री कस्तूरचन्दजी सा० बोरदिया व स्व० श्रीमती चाँदबाई की सुपुत्री हैं। इनके दो पुत्र श्री मनोहरसिंह इन्जीनियर व श्री नरेन्द्रसिंह इन्जीनियर हैं तथा दो पुत्रियाँ सौ० विमला व सौ. शोभा है । जिनकी शादी हो चुकी है। श्री मनोहरसिंह जी कानपुर में सलाहकार हैं व श्री नरेन्द्र सिंह जी मुजफ्फरनगर में बैंक सेवा में हैं। पूरे परिवार को धर्म से बहुत लगाव है व जैन दिवाकरजी महाराज के अनन्य भक्त हैं। आपने स्मृतिग्रन्थ प्रकाशन में उदार सहायता प्रदान की है। श्रीमान इन्द्रसिंहजी बाबेल उदयपुर उदयपुर निवासी जैन दिवाकरजी महाराज के परम भक्त श्रीयुत मालुमसिंह जी बाबेल के सुपुत्र श्री तेजसिंहजी बाबेल के यहाँ ५ मई, १९४३ को आपका जन्म हुआ। आप बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के हैं । शुरू से ही आपका परिवार धर्मरत रहा है, यही कारण है कि आपकी बहिन श्री चन्दनबालाजी जो अब महासती चन्दनबाला जी महाराज हैं १३ वर्ष की लघु अवस्था में ही विदुषी महासती श्री कमलावती जी के चरणों में दीक्षित बनी हैं। आपका बाल्यकाल बड़ा ही संघर्षपूर्ण स्थिति से गुजरा, किन्तु इन संघर्षों के बावजूद आप बाल्यकाल से ही अत्यधिक परिश्रमी एवं मेधावी रहे, हाईस्कूल तक विद्या प्राप्त करने के पश्चात् आपकी नियुक्ति, दी उदयपुर सेण्ट्रल को-आपरेटिव बैंक लि., उदयपुर में एक लिपिक के पद पर हई. अपने सेवा-काल में ही स्नातक (बी० ए०) की उपाधि प्राप्त की। साथ ही अपने मृदुव्यवहार से अपने समस्त सहकर्मियों का स्नेह अजित किया । समाज में व्याप्त कुरीतियों के लिए सदा से आप विपक्ष में रहे हैं। संप्रति आप मुख्य लेखपाल के पद पर कार्यरत हैं तथा अखिल राजस्थान सहकारी बैंक अधिकारी एसोसियेशन के संयुक्त महामन्त्री भी हैं । सदा से ही श्री इन्द्रसिंहजी बाबेल का रुझान संगीत एवं पठन-पाठन पर रहा है। प्रस्तुत प्रकाशन में आपका अच्छा सहयोग मिला है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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