________________
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-न्य ॥
उदार सहयोगियों की सूची : ५८८ :
श्रीमान सोहनलालजी भटेवरा, कोशीथल श्री सोहनलालजी अत्यन्त उदार, मिलनसार, सरल व सरस प्रकृति के धनी हैं । नवयुवक होने पर भी आपमें धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा है। आपमें धार्मिक भावना पैदा करने का श्रेय आपके पूज्य पिता श्री किस्तूरचन्दजी को है । किस्तूरचन्दजी बड़े ही प्रतिभासम्पन्न थे । स्वाध्यायशील होने के कारण पर्युषण पर्व के दिनों में सन्तों के अभाव में वे स्वयं प्रवचन किया करते थे। श्री सोहनलाल जी ने पूज्य पिताजी के नाम पर चार चांद लगा दिये हैं ।
व्यापार के क्षेत्र में जैसे उन्होंने ख्याति प्राप्त की है वैसी ही ख्याति धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में भी प्राप्त की है। आपकी जन्मस्थली वीरभूमि मेवाड़ में कोशीथल की है और आपका व्यवसाय अहमदाबाद में है ।
श्री सोहनलालजी साहब के पांच भाई थे, जिनके क्रमशः नाम इस प्रकार हैं-श्रीमान् तखतमलजी, श्रीमान् चुनीलालजी, श्रीमान् कुन्दनलालजी, श्रीमान् राजमलजी श्रीमान् सोहनलालजी।
__ इन पांचों भाइयों की जोड़ी पांडवों के समान थी, उसमें से दो भाई तखतमलजी तथा भाई चनीलालजी साहब का स्वर्गवास हो गया है। अन्य सभी भाइयों में भी धार्मिक भावनाएं व उत्साह अपूर्व है। आपका सम्पूर्ण परिवार धर्मप्रेमी है।
श्रीयुत गोपालचन्दजी चौधरी, अलवर आप अलवर निवासी स्व० श्रीमान चांदमलजी चौधरी के सुपुत्र हैं । बचपन से ही आप अच्छे प्रतिभाशाली रहे हैं । निष्ठापूर्वक अध्ययन करते हुए आप अपनी प्रतिभा, लगन और कार्यकुशलता के कारण सदा प्रगति करते रहे हैं।
आपने उच्च शिक्षा के लिए पिलानी कालेज में अध्ययन किया। वहां से मैकेनिकल इंजीनियरी परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्णता प्राप्त की। अभी आप सिमको वेगन फैक्ट्री (भरतपुर) में ज्वाइंट प्रेसिडेन्ट पद पर अपना दायित्व कुशलतापूर्वक निबाह रहे हैं ।
आपकी धर्मपत्नी सौ० श्री लाड़कुमारी बहुत ही विवेकशील चतुर गृहिणी हैं। धर्मध्यान में भी विशेष रुचि रखती हैं। आपके दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं। वे भी आपकी तरह सुसंस्कारी और धार्मिक भावना वाले बड़े होनहार हैं।
श्रद्धेय श्री जैन दिवाकरजी महाराज साहब के प्रति आपके पिताश्रीजी की बड़ी श्रद्धा थी। आप भी श्री केवल मुनिजी महाराज साहब के प्रति बड़ी भक्ति-भावना रखते हैं। इस ग्रन्थ प्रकाशन में आपने उदारतापूर्वक सहयोग प्रदान किया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org