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श्री जैन दिवाकर - स्मृति- ग्रन्थ ||
उदार सहयोगियों की सूची : ५८६ :
स्व० सेठ छगनमलजो बोरा, स्व० सेठ वस्तीमलजी बोरा
व्यावर निवासी श्रीमान छगनमलजी व वस्तीमलजी बोरा दोनों सगे भाई थे । आप दोनों बन्धुओं में परस्पर स्नेह एवं प्रेम प्रशंसनीय था। धार्मिक भावना बडी दृढ़ थी। स्व० जैन दिवाकर श्री चोथमलजी म० के प्रति आपकी अनन्य श्रद्धा थी। गुरुदेव की सप्रेरणा से आपने व्यापार में सदा ही प्रामाणिकता और नीतिमत्ता अपनाई और इसी के परिणामस्वरूप रूई एवं ऊन के व्यापार में दूरदूर तक बहुत प्रसिद्धि भी पाई और सफलता भी । गुरुवर्य के उपदेशों से आप बन्धुओं में दानशीलता भी निरन्तर बढ़ती गई और ज्यों-ज्यों दानवृत्ति बढ़ी, व्यापार फला-फूला।
श्रीमान छगनमलजी के एक पुत्र-श्री घीसुलालजी तथा चार पुत्रियाँ हैं । श्री वस्तीमलजी के पांच पुत्र हैं-श्री मिश्रीलालजी, मोतीलालजी, अमरचन्दजी, राजेन्द्रप्रसादजी और लक्ष्मीचन्दजी एवं पुत्रियाँ भी हैं । दोनों भाइयों का भरा-पूरा परिवार बड़ा ही धर्मप्रेमी तथा सुसंस्कारी है। गुरुदेव श्री जैन दिवाकरजी महाराज के स्मृतिग्रन्थ में श्रद्धांजलि स्वरूप बोहरा परिवार ने उदार सहयोग प्रदान किया है।
श्रीमती वीरनदेवी पारख, दिल्ली
आप श्रीमान खेमचन्दजी पारख की धर्मपत्नी हैं । धार्मिक भावना एवं तपस्या की विशेष रुचि और दानशीलता आपकी विशेषता है। आपने ८/११/१५ आदि तपस्याएं की हैं। मासखमण तप और वर्षीतप भी किया है।
श्रीमान खेमचन्दजी भी आपको दान-तप आराधना में सदा सहयोग देते रहते हैं। आपकी प्रवृत्ति परोपकार व लोक-हितकारी कार्यों में विशेष है । ६४ वर्ष की आयु में भी आप सामाजिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते हैं। आप श्रीमान स्व० हिम्मतसिंह जी पारख के सुपुत्र हैं।
श्री जैन दिवाकर स्मतिग्रन्थ में आपका अच्छा सहयोग मिला है।
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