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: ५१६ : मिथ्यात्व और सम्यक्त्व : एक तुलनात्मक विवेचनश्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ
जैन-दर्शन में मिथ्यात्व और सम्यक्त्व :
एक तुलनात्मक विवेचन डा० सागरमल जैन एम. ए., पी-एच. डी.
मिथ्यात्व का अर्थ सामान्यतया जैनागमों में अज्ञान और अयथार्थ ज्ञान दोनों के लिए मिथ्यात्व शब्द का प्रयोग हुआ है। यही नहीं किन्हीं सन्दर्भो में अज्ञान, अयथार्थ ज्ञान, मिथ्यात्व और मोह समानार्थक रूप में प्रयुक्त भी हुए हैं। यहाँ पर हम अज्ञान शब्द का प्रयोग एक विस्तृत अर्थ में कर रहे हैं जिसमें उसके उपरोक्त सभी अर्थ समाहित हैं। नैतिक दृष्टि से अज्ञान नैतिक-आदर्श के ज्ञान का अभाव और शुभाशुभ विवेक की कमी को अभिव्यक्त करता है। जब तक प्राणी को स्व-स्वरूप का यथार्थ ज्ञान नहीं होता है अर्थात् मैं क्या हूँ ? मेरा आदर्श क्या है ? या मुझे क्या प्राप्त करना है ? तब तक वह नैतिक जीवन में प्रविष्ट ही नहीं हो सकता। जैन विचारक कहते हैं कि जो आत्मा के स्वरूप को नहीं जानता, जड़ पदार्थों के स्वरूप को नहीं जानता, वह क्या संयम की आराधना (नैतिक साधना) करेगा?
ऋषिभाषित सूत्र में तरुण साधक अर्हत गाथापतिपुत्र कहते हैं-अज्ञान ही बहुत बड़ा दुःख है । अज्ञान से ही भय का जन्म होता है। समस्त देहधारियों के लिए भव-परम्परा का मूल विविध रूपों में व्याप्त अज्ञान ही है। जन्म-जरा और मत्यु, भय-शोक, मान और अपमान सभी जीवात्मा के अज्ञान से उत्पन्न हए है । संसार का प्रवाह (संतति) अज्ञानमूलक है।
भारतीय नैतिक चिन्तन में मात्र कर्मों की शुभाशुभता पर ही विचार नहीं किया गया वरन् यह भी जानने का प्रयास किया गया कि कर्मों की शुभाशुभता का कारण क्या है। क्यों एक व्यक्ति अशुभ कृत्यों की ओर प्रेरित होता है और क्यों दूसरा व्यक्ति शुभकृत्यों की ओर प्रेरित होता है ? गीता में अर्जुन यह प्रश्न उठाता है कि हे कृष्ण ! नहीं चाहते हुए भी किसकी प्रेरणा से प्रेरित हो, यह पुरुष पापकर्म में नियोजित होता है।
जैन-दर्शन के अनुसार इसका जो प्रत्युत्तर दिया जा सकता है, वह यह है कि मिथ्यात्व ही अशुभ की ओर' प्रवृत्ति करने का कारण है।४ बुद्ध का भी कथन है कि मिथ्यात्व ही अशुभाचरण और सम्यकदृष्टि ही सदाचरण का कारण है। गीता का उत्तर है रजोगुण से उत्पन्न काम ही ज्ञान को आवृत कर व्यक्ति को बलात् पापकर्म की ओर प्रेरित करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध, जैन और गीता के आचार-दर्शन इस सम्बन्ध में एक मत है-अनैतिक आचरण के मार्ग में प्रवृत्ति का कारण व्यक्ति का मिथ्या दृष्टिकोण ही है।
१ दशवैकालिक ४।११ ३ गीता ३।३६ ५ अंगुत्तरनिकाय १।१७
२ इसिभासियाई सूत्त गहावइज्जं नामज्झयणं ४ इमिभसियाई सुत्त २११३
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