Book Title: Jain Divakar Smruti Granth
Author(s): Kevalmuni
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 644
________________ % 3D : ५८३ : उदार सहयोगियों की सूची ॥ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्य। समाजरत्न, उदारमना कंवरलाल जी बेताला, गोहाटी (आसाम) उदार हृदय, धर्मनिष्ठ, समाजरत्न सेठ श्रीमान् कंवरलाल जी बेताला अत्यन्त सरल हृदय एवं धार्मिक प्रवृत्तियों के प्रति हार्दिक रूप से निष्ठावान, सज्जन प्रकृति के सुश्रावक हैं। आपका जन्म वि० सं० १६८० डेह (नागौर) निवासी श्रीमान पूनमचन्द जी बेताला के घर श्रीमती राजाबाई की कुक्षि से हुआ। आप पाँच भाई हैं। जिसमें आपका चौथा क्रम है। आप अभी गोहाटी (आसाम) के अच्छे उद्योगी तथा साहसी व्यवसायी हैं। आप अनेक संस्थाओं के सक्रिय सहयोगी हैं । उदारतापूर्वक विविध रचनात्मक प्रवृत्तियों के आप उत्साह के साथ प्रायः दान देते रहते हैं । सन्तों की सेवा के प्रति तो जैसे आपके मन का कण-कण समर्पित है। श्री जैन दिवाकर जी महाराज के प्रति आपके हृदय में असीम श्रद्धा भक्ति है। आपकी धर्म पत्नी श्रीमती विदामाबाई तथा आपके सुपुत्र श्री धर्मचन्द जी की धार्मिक रुचि भी प्रशंसनीय है। आपकी दो पुत्रियाँ श्रीमती कांता एवं ममता तथा पौत्र महेश, मुकेश आदि सभी की जैन संस्कृति के प्रति असीम आस्थाएँ हैं। (शेष पृष्ठ ५८२ का) आप सन् १९३३ से सेवा समिति ब्यावर, के सभापति एवं कोषाध्यक्ष रहे। जहां से करीब १५०-२०० रोगियों को हमेशा मुफ्त औषधि मिलती है, समिति के लिये ३१०१) रु० प्रदान कर आपने अपनी ओर से एक विशाल कमरा भी बनाया है। आप सन् १९५५ से ब्यावर श्रावक संघ के उपसंघपति, अहिंसा सभा के सभापति, ऊन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य एवं सन् १९६२ से प्रेसीडेंट पद पर रहे । चतुर्थ जैन वृद्धाश्रम चित्तौड़गढ़ के ट्रस्टी भी थे जहाँ आपने अपनी ओर से एक कमरा भी बनवा दिया है। जैन दिवाकर पुस्तकालय ब्यावर व अजमेर संघ के धार्मिक भवन में भी एक-एक कमरा आपने अपनी ओर से बनवाया। ब्यावर में आपने रु. १५०००) की एक मुश्त रकम निकाल कर "तालेरा पब्लिक चेरीटेबल ट्रस्ट, ब्यावर" की स्थापना की । नगर के चक्षु-दान यज्ञ में भी आप प्रतिवर्ष पूर्ण सहयोग देते रहे। आपकी सहधर्मिणी श्रीमती ऐजन कंवरजी एक विशाल हृदय वाली धार्मिक वृत्ति की महिला है, धार्मिक प्रसंगों एवं व्यवहारिक कार्यों में हजारों को खिलाकर खाने में ही आपको विशेष रुचि है। वृद्धावस्था होते हुए भी नियमव्रत में दृढ़ हैं सन्त-सतियों की सेवा में तत्पर रहती हैं। आपके दो सुपुत्र हैं-श्रीमान् निहालचन्दजी एवं श्री लक्ष्मीचन्दजी। श्री निहालचन्दजी सरल हैं । श्री लक्ष्मीचन्दजी उत्साही युवक हैं। नम्र, सरल, उदारवृत्ति वाले हैं। आपकी धर्मपत्नी भी बहुत धर्मात्मा एवं उदार है। श्रीमान् तालेराजी का २५ अप्रेल, १९६६ को स्वर्गवास हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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