Book Title: Jain Divakar Smruti Granth
Author(s): Kevalmuni
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 645
________________ || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ || उदार सहयोगियों की सूची : ५८४ : स्व० मांगीलाल जी बडेर, देहली देहली के स्थानकवासी जैन समाज में बडेर परिवार सदा से ही धर्म एवं समाज की सेवा में अमूल्य सेवाएं देता रहा है। श्रीमान् रिखबचन्दजी बडेर के पिता स्व. जौहरी श्री मांगीलालजी बडेर भी एक श्रावक रत्न थे । आप व्यापार के क्षेत्र में नीलम (जवाहरात) के प्रसिद्ध पारखी एवं व्यापारी थे। आपका हृदय बहुत ही उदार तथा दया पूर्ण था। जो भी आपके पास भावना लेकर आया वह खाली हाथ नहीं लौटा । आपका साहस और धैर्य तो बड़ा प्रशंसनीय था। जब आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री चम्पालालजी तथा मध्यम पुत्र श्री मुन्नालालजी का स्वर्गवास हुआ तो आपने उनको अन्तिम समय में धर्म सहयोग कराने में अद्भुत साहस का परिचय दिया। सन्तों को बुलाकर मत्युशय्या पर पड़े पुत्रों को यावज्जीवन संथारा कराकर उनका जीवन सार्थक कराया यह बड़े ही आदर्श की बात है। इस प्रकार आपके जीवन-व्यवहार में धर्म और त्याग भावना पग-पग पर साकार थी। आप जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज के प्रति बड़ी ही श्रद्धा भावना रखते थे। गुरुदेव श्री की भी आप पर तथा आपके परिवार पर असीम कृपा थी। आपने विक्रम संवत् १९६३ आसोज सुदि पंचमी को ५६ वर्ष की आयु में शान्तिपूर्वक संथारा करके देह-त्याग किया। तपस्विनी श्रीमती मीनादेवी, बडेर धर्मनिष्ठ उदारचेता श्रीमान् रिखबचन्दजी बडेर की धर्मपत्नी सौ० मीना देवी जी बहुत धार्मिक संस्कार सम्पन्न, तपस्या एवं दान-धर्म में विशेष रुचि वाली महिला रत्न हैं। आपने अपने स्व. स्वसुर श्रीमान् मांगीलालजी बडेर एवं सास स्व० श्रीमती विनय कंवर जी की काफी सेवा की। धर्म एवं समाज सेवा के प्रत्येक कार्य में आप उदारतापूर्वक सहयोग देती रहती हैं । श्रीमान् रिखबचन्दजी साहब भी आपकी धार्मिक प्रवृत्तियों को सदा प्रोत्साहन देते रहते हैं। - आपने अनेक तपस्याएं की है । मुख्यतः १ से १५ उपवास तक की लड़ी। ४ अठाई ६ वर्षी तप, एक मास का आयंबिलतप किया है। इस वर्ष (१९७८) श्री केवल मुनि जी महाराज के चातुर्मास में आपने मासखमण तप किया है। आप शरीर से अवश्य दुर्बल हैं पर आत्म-बल बहुत प्रखर है। आपके दो सुपुत्र-श्री महेन्द्रकुमार व श्री राजेन्द्रकुमार तथा-दो पुत्रियाँ-श्रीमती पवन कुमारी तथा श्रीमती फूल कुमारी हैं । सभी परिवार बड़ा ही धर्मप्रेमी, उदार हृदय और समाज सेवा में अग्रणी है। श्री जैन दिवाकर स्मति ग्रन्थ में आपने अच्छा सहयोग किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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