Book Title: Jain Divakar Smruti Granth
Author(s): Kevalmuni
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 587
________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-न्य ।। चिन्तन के विविध बिन्दु : ५२८ : दर्शन में माया जगत की व्याख्या और उसकी उत्पत्ति का सिद्धान्त है, जबकि अविद्या वैयक्तिक आसक्ति है। समीक्षा वेदान्त-दर्शन में माया एक अर्ध सत्य है जबकि तार्किक दृष्टि से माया या तो सत्य हो सकती है या असत्य । जैन-दार्शनिकों के अनुसार सत्य सापेक्षिक अवश्य हो सकता है लेकिन अर्ध सत्य (Half Truth) ऐसी कोई अवस्था नहीं हो सकती है। यदि अद्वय परमार्थ को नानारूपात्मक मानना यह अविद्या है तो जैन दार्शनिकों को यह दृष्टिकोण स्वीकार नहीं है । यद्यपि जैन, बौद्ध और वैदिक परम्पराएँ अविद्या की इस व्याख्या में एकमत हैं कि अविद्या या मोह का अर्थ अनात्म में आत्मबुद्धि है। उपसंहार ___ अज्ञान, अविद्या या मोह की उपस्थिति ही हमारी सम्यक् प्रगति का सबसे बड़ा अवरोध है । हमारे क्षुद्र व्यक्तित्व और परमात्मत्व के बीच सबसे बड़ी बाधा है। उसके हटते ही हम अपने को अपने में ही उपस्थित कर परमात्मा के निकट खड़ा पाते हैं। फिर भी प्रश्न है कि इस अविद्या या मिथ्यात्व से मुक्ति कैसे हो? वस्तुतः अविद्या से मुक्ति के लिए यह आवश्यक नहीं हम अविद्या या अज्ञान को हटाने का प्रयत्न करें क्योंकि उसके हटाने के सारे प्रयास वैसे ही निरर्थक होंगे जैसे कोई अन्धकार को हटाने के प्रयत्न करे । जैसे प्रकाश के होते ही अन्धकार स्वयं ही समाप्त हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान रूप प्रकाश या सम्यक् दृष्टि के उत्पन्न होते ही अज्ञान या अविद्या का अन्धकार समाप्त हो जाता है। आवश्यकता इस बात की नहीं है कि हम अविद्या या मिथ्यात्व को हटाने का प्रयत्न करें वरन् आवश्यकता इस बात की है कि हम सम्यक्दर्शन और सम्यक्ज्ञान की ज्योति को प्रज्वलित करें ताकि अविद्या या अज्ञान का तमिस्र समाप्त हो जावे। सम्यक्त्व जैन-परम्परा में सम्यक्दर्शन, सम्यक्त्व या सम्यक्दृष्टित्व शब्दों का प्रयोग समानार्थक रूप में हुआ है। यद्यपि आचार्य जिनभद्र ने विशेषावश्यकभाष्य में सम्यक्त्व और सम्यक्-दर्शन के भिन्न-भिन्न अर्थों का निर्देश किया है।२८ अपने भिन्न अर्थ में सम्यक्त्व वह है जिसकी उपस्थिति से श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र सम्यक् बनते हैं। सम्यक्त्व का अर्थ-विस्तार सम्यक्दर्शन से अधिक व्यापक है, फिर भी सामान्यतया सम्यकदर्शन और सम्यक्त्व शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग किए गए हैं। वैसे सम्यक्त्व शब्द में सम्यकदर्शन निहित ही है। सम्यक्त्व का अर्थ सबसे पहले हमें इसे स्पष्ट कर लेना होगा कि सम्यक्त्व या सम्यक शब्द का क्या अभिप्राय है। सामान्य रूप में सम्यक् या सम्यक्त्व शब्द सत्यता या यथार्थता का परिचायक है, उसे हम उचितता भी कह सकते हैं। सम्यक्त्व अर्थ तत्त्वरुचि है। इस अर्थ में सम्यक्त्व सत्याभिरुचि या २८ विशेषावश्यकभाष्य २६ अभिधान राजेन्द्र, खण्ड ५, पृष्ठ २४२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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