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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-वान्थ ।
चिन्तन के विविध बिन्दु : ५७२:
इस चातुर्मास के पश्चात् ही आपठाणा बन गए। पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज ने चार ही संघ की साक्षी से श्री शिवलालजी महाराज को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। उनके लिए यह विरद सुशोभित होता है-'क्रियोद्धारक प्रातः स्मरणीय पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज ।
इस तरह लगभग ३८ वर्ष ५ मास तक शुद्ध संयम का परिपालन कर विक्रम सं० १९१७ बैसाख शुक्ल ५ मंगलवार को जावद में आपका संथारा-समाधि पूर्वक स्वर्गवास हुआ।
जैन दिवाकर प्रसिद्ध वक्ता श्री चौथमलजी महाराज ने एक पद्य में आपके विषय में कथन किया है कि आप आउष्टक विमान में देवपने उत्पन्न होकर महाविदेह क्षेत्र में राज्य वंश में बलदेव की पदवी प्राप्त कर मोक्ष में पधारेंगे। जैन दिवाकरजी महाराज ने परम्परा से सुना था कि पूज्य श्री के देवलोक होने के बाद उनके पात्र पर स्वर्णाक्षरों में यह सब लिखा हुआ था जो बाद में मिट गया।
पूज्य श्री शिवलालजी महाराज
पूज्य श्री दौलतरामजी महाराज के जिन चार प्रसिद्ध शिष्यों का ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, उनमें श्री गोविन्दरामजी महाराज भी थे, जिनके शिष्य श्री दयालजी महाराज थे । श्री दयालजी के ही शिष्य श्री शिवलालजी महाराज थे। आपकी दीक्षा रतलाम में वि० सं० १८६१ में हुई थी। आपका जन्मस्थान धामनिया (नीमच) मध्य प्रदेश था।
___ आप भी पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज की तरह की शास्त्र मर्मज्ञ, स्वाध्यायी, आचारविचार में महान् निष्ठावान तथा परम श्रद्धावान थे। आपने लगातार ३२ वर्ष तक एकान्तर उपवास किया था । आप केवल तपस्वी ही नहीं, अपितु पूर्ण विद्वान् स्व-पर मत के पूर्ण ज्ञाता व समर्थ उपदेशक थे। आप भक्ति भरे जीवनस्पर्शी उपदेशात्मक कवित्त व भजन आदि की रचना भी करते थे।
__ आप पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी म० के साथ ही विचरण करते थे। कोई जिज्ञासु यदि पूज्य हुक्मीचन्दजी महाराज से प्रश्न करता तो उसका उत्तर प्राय: आप ही दिया करते थे। इसका कारण पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज की मौनावस्था में रहने की प्रवृत्ति थी।
___जब पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज का सन्त समुदाय अत्यधिक बढ़ गया तब उन्होंने सन्तों से कहा कि हे सन्तों ! मुनि शिवलालजी ही आप सबके आचार्य हैं। इस प्रकार सभी सन्तों ने पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज का आदेश शिरोधार्य किया और उन्होंने श्री शिवलालजी महाराज को अपना आचार्य मान लिया। आपको आचार्य पद सं० १९०७ में बीकानेर में दिया गया।
पूज्य श्री शिवलालजी महाराज ने भी जैन-समाज व शासन का समुत्थान किया। वर्तमान काल में पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज के सम्प्रदाय के जितने भी मुनि व सन्त हैं सब आप ही के शिष्य प्रशिष्य परिवार में हैं। आप ही कुलाचार्य भी हैं।
पूज्य श्री हुक्मीचन्दजी महाराज ने शिष्य बनाने के त्याग कर लिए थे अतएव जो शिष्य बने वह पूज्य श्री शिवलालजी महाराज के बने।
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