________________
: ४३६ : वैराग्य-उपदेश प्रधान पद
श्री जैन दिवाकर स्मृति- ग्रन्थ
हीरे की जांच तो जौहरी को आवे है । या घायल की गति घायल बतलावे है ॥ सत शिक्षा को मूरख उलटी ताने है || ३ || मुक्ता को तजके गुंजा शठ उठावे । इक्षु को तज के ऊँट कटारो खावे ॥ पा अमूल्य नर-तन विषयों में ललचावे | गज से विरुद्ध हो जैसे श्वान घुर्रावे ॥ कहे 'चौथमल' जो समझे वही दाने है ॥४॥ ५. कुव्यसन- निषेध
Jain Education International
(तर्ज- या हसोना बस मदीना करबला में तू न जा ) लाखों व्यसनी मर गये, कुव्यसन के परसंग से । अय अजीजों बाज आओ, कुव्यसन के परसंग से || टेर || प्रथम जूवा है बुरा, इज्जत धन रहता कहाँ । महाराज नल वनवास गये, कुव्यसन के परसंग से || १ || मांस भक्षण जो करे, उसके दया रहती नहीं । मनुस्मृति में है लिखा, कुव्यसन के परसंग से ||२|| शराब यह खराब है, इन्सान को पागल करे । यादवों का क्या हुआ, कुव्यसन के परसंग से ॥३॥ रण्डीबाजी है मना, तुमसे सुता उनके हुवे । दामाद की गिनती करे, कुव्यसन के परसंग से ||४|| जीव सताना नहीं खा, क्यों कत्ल कर कातिल बने । दोजख का मिजवान हो, कुव्यसन के परसंग से ||५|| इश्क बुरा परनार का, दिल में जरा तो गौर कर । कुछ नफा मिलता नहीं, कुव्यसन के परसंग से ॥६॥ माल जो परका चुरावे, यहाँ भी हाकिम दे सजा । आराम वह पाता नहीं, कुव्यसन के परसंग से ॥७॥ गांजा, चरस, चण्डू, अफीम और भंग तमाखू छोड़ दो । 'चौथमल' कहे नहीं भला, कुव्यसन के परसंग से ||८|| ६. दुर्लभ दस अंग
(तर्ज- पनजी मुडे बोल )
आज दिन फलियो रे -२ थाने जोग बोल यो दश को मिलियो रे | टेर
मनुष्य जन्म और आर्य भूमि, उत्तम कुल को योगो रे । दीर्घ आयु और पूर्ण इन्द्री, शरीर निरोगो रे ॥१॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org