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| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
: ४३३ : भक्ति-स्तुति प्रधान-पद
गौशाले की रक्षा वीर करे नैनन से। इलायची कुवर गुरु देख तिरे नैनन से ।। मुनि चौथमल नैनन पे छन्द सुनावे ॥४॥
८. ऋषभ-बाल लीला
(तर्ज-छोटा-सा बलमा मोरे) ऋषभ कन्हैयालाल आंगना में, रुमझुम खेले। अँखियन का तारा प्यारा, आंगना में, रुमझूम खेले ।टेर। इन्द्र इन्द्रानी आई, प्रेम धर गोदी में लेले। हँसे रमावे करे प्यार, दिल की रलियाँ रेले ॥१॥ रत्न पालनिये माता, लाल ने झुलावे झूले। करे लल्ला से अति प्यार, नहीं वो दूरी मेले ।२। स्नान कराई माता, लाल ने पहिनावे झेले। गले मोतियन का हार, मुकुट शिर पर मेले ।३। गुरु प्रसादे मुनि चौथमल, यों सबसे बोले । नमन करो हरबार, वो तीर्थंकर पहले ।४।
६. ऋषभ-मरुदेवा
(तर्ज-पनजी मुंडे बोल) ऋषभजी मूडे बोल, बोल, बोल आदेश्वरवाला काँई थारी मरजीरे ।
मासू मूडे बोल। बोल - बोल मारा ऋषभ कन्हैया, कांई थारी मरजी रे।
मांसू मूड़े बोल ।टेर। सुनी आज मारा लाल पधारिया, वनिता बाग के माँहिरे। तुरत गज असवारी करने, आई उमाही रे।। रह्यो मजा में है सुख-साता, खूब कि मन चायो रे। एक कहन या थांसू लाल, मोड़ो क्यों आयो रे ।२। खेर हुई अण हुई न होवे, एक बात भली नहीं कीधी रे । गया पाछे कागद, नहीं भेज्यो, मोरी खबरा न लीधी रे।३। वार - त्योंहारे भोजन भांण, ताता कोई आता रे। थारी याद में ठण्डा होता, पूरा नहीं भाता रे ।४। खोलो-खोलो जल्दी मौन न, खोलो खोलो खोलो रे। बोलो बोलो मांसू बोलो, बोलो बोलो रे ।।
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