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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें : ३६२ :
मनिश्री चौथमलजी महाराज के पतितोद्धारक रूप का वर्णन कहाँ तक किया जाय, यह तो उसकी झांकी मात्र है। उनका तो सम्पूर्ण जीवन ही दलितों के उत्थान में बीता था। भारतीय संस्कृति में संत का एक विशेषण है-'पतित पावन' और यह विशेषण जैन दिवाकरजी महाराज के लिए सर्वथा उपयुक्त है जो उनके जीवन प्रसंगों से सर्वथा साकार हो रहा है।
आज को महती आवश्यकता
आज हम जिस भी दिशा में दृष्टिपात करते हैं, उसी तरफ भ्रष्टाचार, चोरी और आत्मपतन का बोलवाला है । हम जब भी कहीं किसी महापुरुष की जन्मतिथि या पुण्यतिथि मनाते हैं तो उस महापुरुष के जीवन की सूक्ष्म जांच-पड़ताल नहीं करते। इसके लिए हमें वक्त निकालना चाहिए । मुनिश्री चौथमलजी महाराज ने विभिन्न कठिनाइयों को सहते हुए समाज को इस प्रकार का दिशाबोध कराया जिससे समाज में आशा की एक नई किरण प्रस्फुटित हुई।
आज स्थिति क्या है, हम देखें तो लगेगा–विद्यार्थी कहते हैं-'प्राध्यापक अपना दायित्व ठीक से नहीं निभाते।' प्राध्यापक कहते हैं-'सरकार हमारी मांगों का यथोचित समाधान नहीं करती। सरकार कहती है-व्यापारीगण टेक्स चोरी करते हैं, मिलावट करते हैं अतः सख्त कानून की आवश्यकता है।' अर्थात् चारों ओर असन्तोष की भयानक लपटें उठ रही हैं। और इसी के साथ प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने अधिकारों की बात करता है तथा वह अपने कर्तव्य को भूल जाता है।
ऐसे समय पर उस व्यक्ति पर टिप्पणी करने की आवश्यकता होगी जो अपने को 'जैन' समझता है। क्या ऐसे लोग एक प्रतिशत भी सच्चे दिल से चौथमलजी महाराज के आदर्शों को व्यवहार में लाते हैं । यह विचारणीय है अन्यथा इस प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशन व जन्म तिथिय मनाने का कोई लाभ नहीं होगा।
आज आवश्यकता इस बात की है कि उनके अनुरूप बना जाय, अर्थात् उनके व्यवहार, उनके बताए रास्ते का अनुकरण किया जाय, तभी उनके प्रति किए गए किसी भी कार्य के उद्देश्य की प्राप्ति हो सकेगी। कार्य अमर रहेगा
यदि आज मनिश्री चौथमलजी महाराज के कार्यों का ऐतिहासिक मूल्यांकन किया जाय, तो कोई भी यह आसानी से कह सकेगा कि आपके प्रयत्न इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखे जाने चाहिए। स्वयं को तकलीफों में डालकर अन्त्योदयी व पतितों के कल्याण के लिए आपने जो कष्ट उठाये तथा उसका जो सुपरिणाम सामने आया वह इतिहास में अमर रहेगा।
पूरा पता
रवीन्द्रसिंह सोलंकी मोहन सदन, लाडपुरा कोटा-३२४००६
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