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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३१०:
महाराज ने किया, इन वर्षों में न पहले देखा गया एवं न उसके बाद आज तक ही इनकी सानी का कोई भी उदाहरण दिखाई नहीं देता। जो प्रतिज्ञाएँ या घोषणाएं की जाती थीं उनकी प्रति वे बड़े आदर भाव से पूज्य गुरुदेव को भेंट करते थे। वैष्णव धर्म से प्रभावित होते हुए भी ये लोग दिवाकरजी महाराज साहब के व्याख्यानों को बड़े चाव से सुनते थे तथा बार-बार सुनने के लिए लालायित रहते थे। धर्म के प्रति और वह भी जैन धर्म के प्रति इनकी इतनी रुचि जागृत होना बहुत विशाल परिवर्तन था संस्कारों में ।
मैंने इस लेख में जैनेतर समाज के लोगों के संस्कारों में हुए परिवर्तनों के बारे में ही अधिक निवेदन किया है क्योंकि मेरा उद्देश्य यह स्पष्ट करना था कि जैनेतर समाज में इतना संस्कार परिवर्तन हो सकता है, तो अपने ही समाज में परिवर्तन होना तो बहुत स्वाभाविक है । पूज्य गुरुदेव ने जैन एवं जैनेतर समाज पर अत्यन्त उपकार किया है तथा संस्कार परिवर्तन एवं सुसंस्कार निर्माण में आश्चर्यजनक कार्य किया है। उस समय में जैन समाज में कन्याविक्रय की प्रथा प्रच लित थी । गुरुदेव ने जहाँ भी इस कुप्रथा को पाया, अपने मार्मिक उपदेशों द्वारा उसका उन्मूलन किया। चित्तौड़गढ़ का ओसवाल, माहेश्वरी एवं इतर समाज कन्या विक्रय के लिए कुख्यात था। वहाँ की इस प्रथा का अन्त करवाया । जैन समाज वणिक वर्ग है। इस वर्ग में शोषणवृत्ति का अन्त करने, अप्रमाणित माप-ताल का अन्त करने, मुनाफाखोरी को रोकने आदि के लिए भी बहुत प्रयास किया एवम् उसमें भी आपको बहुत सफलता मिली। जैन समाज ही नहीं, अन्य समाज भी युगों-युगों तक आपके ऋणी रहेंगे। देश के कौने-कोने में भ्रमण कर आपने लोगों में व्याप्त दुष्प्रवृत्तियों एवं कुसंस्कारों को परिवर्तित करने में अद्वितीय योगदान दिया। जिन खटीकों के हाथ हिंसा के कारण लहू से सने रहते थे, उन्हीं खटीकों ने हिंसा का त्याग किया। जो राजा-महाराजा सुरासुन्दरी में सदैव मशगूल रहते थे उन्होंने श्री दिवाकरजी महाराज के उपदेश से उसे बुरा समझकर त्याग कर दिया ।
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दया मूलक सार्वजनीन लोकप्रियता का एक उदाहरण और प्रस्तुत है । सन् १९२२ ई. में मुनि श्री मयाचन्द्रजी महाराज साहब ने ३३ उपवास की तपस्या की । तप की पूर्णाहुति के पावन प्रसंग पर मिल कारखाने, कसाईखाने आदि बन्द रखवाने का प्रयास किया गया। पूज्य दिवाकरजी महाराज द्वारा प्रेरित किये जाने पर वहीं के मिल मालिक लुकमान भाई ने, जो मुसलमान थे, अपनी मिल बन्द रखी । ऐसे अवसर पर मोहर्रम का त्योहार होने पर भी अभक्ष्य मांस आदि के स्थान पर अपने जाति भोज में मीठे चावल बनवाये और आपके प्रयत्नों से १०० बकरों को अभयदान दिया गया । इसी शहर उज्जैन में एक दिगम्बर जैन, मिल के प्रधान व्यवस्थापक को कहने पर उन्होंने भी मिल बन्द रखी ।
पालनपुर में नवाबों का शासन पालनपुर के तात्कालीन नवाब ने
संवत् १९७२ में दिवाकरजी महाराज पालनपुर पधारे था । आपके व्याख्यानों एवं त्यागमय जीवन से प्रभावित होकर आजीवन शिकार, मद्यपान एवं मांसभक्षण तीनों का त्याग कर दिया। साथ ही साथ अपनी रियासत में आज्ञा जारी की कि जहाँ भी पूज्य दिवाकरजी महाराज पधारें उन्हें पूर्ण सम्मान देवें एवं अनेक व्याख्यानों का श्रवण करें।
देवगढ़ की राजकुमारी लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत ने एक बार सिकन्दराबाद में जैन साध्वी श्रीसायर कुंवरजी महाराज के दर्शन किये एवं भक्ति प्रदर्शित की। साध्वीजी ने राजकुमारीजो की भक्ति देखकर पूछा कि जैन सन्त सतियों के प्रति उनकी इतनी भक्ति कैसे जगी ? राजकुमारी जी
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