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प्रति दिवकर स्मृति सल्य
श्री जैन दिवाकर स्मृति-धान्य
भक्ति, उपदेश, वैराग्य तथा
नीति की स्वर-चेतना में गुम्फित __श्री जैन दिवाकरजी के प्रिय पद्य
भक्ति-स्तुति प्रधान-पद
१. महामन्त्र को आरती जय अरिहन्ताणं प्रभु, जय अरिहन्ताणं । भाव भक्ति से नित प्रति, प्रणम् सिद्धाणं ।।
ओम् जय अरिहन्ताणं ।टेर। दर्शन ज्ञान अनन्ता, शक्ति के धारी, स्वामी !
यथाख्यात समकित है, कर्म शत्रु हारी ।।१। है सर्वज्ञ सर्वदर्शी बल, सुख अनन्त पाये। अगुरु लघु अमूरत, अव्यय कहलाये ।।२।
नमो आयरियाणं, छत्तीस गुण पालक ।
जैनधर्म के नेता, संघ के संचालक 1ॐ३। नमो उवज्झायाणं चरण-करण ज्ञाता।
अङ्ग उपाङ्ग पढ़ाते, ज्ञान दान दाता ।ॐ।४। नमो सव्व साहूणं, ममता मदहारी। सत्य अहिंसा अस्तेय, ब्रह्मचर्यधारी ।ॐ५॥
चौथमल कहे शुद्ध मन, जो नर ध्यान धरे । पावन पंच परमेष्ठी, मङ्गलाचार करे ।ॐ६।
२. मन्त्रराज
(तर्ज-त्रिभंगी छन्द) मन्त्रों का मन्त्र नवकार मन्त्र, तन्त्रों में तन्त्र हरे दुःख तन का। जो लेवे धार, हो पल में पार, करदे उद्धार पापी जन का ।टेक। पूर्वो का सार, शरण आधार, है गुण अपार, तारण-तिरण । मंगलिक आप जयवन्त जाप, दे सुख अमाप, कल्याण करण। मनोरथ देपुर, चिन्ता दे चुर, कटे कर्म कर, भव दःख भंजन। है यही रसान, नाग दमन जान, पारस प्रधान, करदे कंचन । भाषे जिनेश, रहते हमेश, कटजा क्लेश उनके मन का ॥१॥
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