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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
बाणी के जादूगर : श्री जैन दिवाकर जी महाराज
एक प्रचलित संस्कृत श्लोक में कहा है
प्रवचन कला की एक झलक : ४१८ :
" वक्ता दशसहस्रेषु'" ।
- हजार मनुष्यों में एक पण्डित और दस हजार मानवों में एक वक्ता होता है ।
वाणी का विराट् वैभव ही वक्ता के व्यक्तित्व को चमकाता है । चूँकि वाणी परिचित और अपरिचित, जान और अनजान सभी को जोड़ने का काम करती है । अपने मनोगत विचारों को वाणी के माध्यम से श्रोताओं के कानों तक ही नहीं, अपितु हृदय के आंगन तक पहुँचाने में जो प्रयत्नशील है । जिसके जीवन में आचार और विचार का सामंजस्य, करणी कथनी में एकरूपता परिलक्षित होती है, और जिसकी ओजस्वी वाणी में एक ऐसा चुम्बकीय आकर्षण भरा रहता है, वस्तुतः अगणित मनुष्यों के हृदय में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाने में, जीवन की कुपथगामिनी राह को सुपथ में मोड़ने में एवं दैनिक कार्य-कलापों की काया को पलटने में जो सक्षम है। ऐसे तेजस्वी और ओजस्वी वक्ता को समाज का भावी सुधारक, मार्गदर्शक एवं तारक माना गया है। जो कुरूढ़ियों की बेड़ी में जर्जरित मानवता को एक नई दिशा देने में कुशल होते हैं ।
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** श्री सुरेश मुनि शास्त्री (श्री प्रतापमलजी महाराज के सुशिष्य )
ऐसे प्रभावशाली धर्मं वक्ता समाज में बहुत कम हुआ करते हैं । प्रथम तो मानव के मनमस्तिष्क में सत्यं शिवं सर्जनात्मक विचार बहुत कम उठते हैं । कदाच् सुविचार तरंगित हुए भी तो सुव्यवस्थित ढंग से यथाप्रसंग उनकी अभिव्यक्ति करना प्रत्येक विद्वान् के लिए बहुत कठिन है ।
स्वयं मैंने अनुभव किया है । कतिपय नर-नारी पढ़ाई-लिखाई में अच्छी योग्यता पा लेते हैं, उनकी लेखनी में असरकारक जादू होता है, प्रत्येक दुर्गम विषय को इतनी सुगम सुन्दर रीति से लेखनी द्वारा प्रतिपादित करेंगे कि - पाठक स्वयं उनकी लेखनी पर दंग रह जाते हैं । हूबहू रस अलंकार युक्त विषय का वर्णन करने में पटु होते हैं । परन्तु सभा के बीच में खड़े होकर पांच-दस मिनिट बोल नहीं पाते हैं, वे स्वयं कहते हैं- हमें अपनी लेखनी द्वारा विषय का चित्रण करने की शक्ति मिली है । किन्तु बोलने की नहीं । इसीलिए कहा है
"वक्ता दशसहस्रेषु" ।
जगवल्लभ प्रसिद्ध वक्ता जैन दिवाकरजी महाराज जैन समाज में प्रतिभा सम्पन्न साधक प्रसिद्ध वक्ता के रूप में उदित हुए थे। आपकी वाक्शक्ति में एक अनोखा आकर्षण और जादू था । जब आप धर्मोपदेश फरमाते थे, तब बिना प्रचार के हजारों नर-नारियों की भीड़ स्वतः उमड़-घुमड़ कर एकत्रित हो जाया करती थी। इतना ही नहीं, पीयूष वर्षीय प्रवचन श्रवण कर सभी श्रोता
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