________________
:४१५ : प्रेरक प्रवचनांश
श्री जैन दिवाकर -स्मृति-ग्रन्थ ।
और 'रु' का अर्थ नाश करना है। दोनों का सम्मिलित अर्थ यह निकला कि जो अपने शिष्यों के अज्ञान का नाश करता है, वही 'गुरु' कहलता है।
हिंसा में अशान्ति की भयानक ज्वालाएं छिपी हैं। उससे शान्ति कैसे मिलेगी? वास्तविक शान्ति तो अहिंसा में ही निहित है । अहिंसा की शीतल छाया में ही लाभ हो सकता है।
मानव-जीवन की उत्तमता की कसौटी जाति नहीं है, भगवद्मजन है। जो मनुष्य परमात्मा के भजन में अपना जीवन अर्पित कर देता है, और धर्म पूर्वक ही अपना जीवन-व्यवहार चलाता है, वही उत्तम है, वही ऊँचा है, चाहे वह किसी भी जाति में उत्पन्न हुआ हो । उच्च से उच्च जाति में जन्म लेकर भी जो हीनाचारी है, पाप के आचरण में जिसका जीवन व्यतीत होता है और जिसकी अन्तरात्मा कलुषित बनी रहती है, वह मनुष्य उच्च नहीं कहला सकता।
व्यापारी का कर्तव्य है. जिसे देना है, ईमानदारी से दे और जिससे लेना है उससे ईमानदारी से ही ले, लेन-देन में बेईमानी न करे।
जब तक किसी राष्ट्र की प्रजा अपनी संस्कृति और अपने धर्म पर दृढ़ है तब तक कोई विदेशी सत्ता उस पर स्थायी रूप से शासन नहीं कर सकती।
(१९) विवेकवान् डूबने की जगह तिर जाता है, और विवेकहीन तिरने की जगह भी डूब जाता है।
(२०) निश्चिन्त बनने के लिए निष्परिग्रही बनना चाहिए।
(२१) अन्याय का पैसा अब्बल तो सामने ही समाप्त हो जायगा कदाचित् रह गया तो तीसरी पीढ़ी में दिवालिया बना ही देगा। ईमानदारी का एक पैसा भी मोहर के बराबर है और बेईमानी की मोहर भी पैसे के बराबर नहीं है।
(२२) क्रोध से प्रीति का नाश होता है। मान से विनय का नाश होता है, माया से मित्रता का नाश होता है, परन्तु लोभ से सभी कुछ नष्ट हो जाता है। यह तमाम अच्छाइयों पर पानी फेर देता है।
(२३) रात्रि में चिड़ियां कबूतर और कौवे आदि भी चुगने को नहीं जाते हैं तो आप तो इन्सान हैं। रात्रि में खाना बिलकुल मना किया गया है। रात्रि में न खाने से बारह महीने में छह महीने तपस्या बिना जोर लगाये ही हो जाती है। इससे शुभ-गति का बन्ध होता है और अशुभ गति का बन्ध टल जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org