________________
श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ ।
व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें : ३५२ :
और मी--
बलिदान के द्वारा नहीं कभी, ईश्वर प्रसन्न हो सकता है। बलकर्ता ही भवसागर में, युग-युग इस हेत भटकता है। xxx जीवों की हिंसा का विधान जिस शास्त्र में बतलाया है।
ईश्वर का यह कलाम नहीं, तू क्यों धोके में आया है। मोह त्याग से आत्मा-परमात्मा का रूप धारण कर सकता है
पाँचों तत्वों को जो लखै, बहिरात्मा कहलाय ।
अन्तरात्मा मोह तजे तो, परमात्मा बन जाय ॥ आत्म-बोध के सम्बन्ध में सन्त दिवाकरजी महाराज बताते हैं
शम दम उपशम अहिंसा सत्त दत्त, बह्मचर्य अममत्व गुणधार ।
एकाग्रता मन की कर लेहो, आत्मा उसके साक्षात्कार ॥ सन्त शिरोमणि दिवाकरजी महाराज 'Books for reader and Readers for books' वाली कहावत को चरितार्थ किया था। आपका जीवन श्रोताओं के लिए था, और श्रोताओं का जीवन आपके लिए था। आप श्रोता के लिए और श्रोता आपके लिए थे। प्यासा सदैव कुंए के पास जाता है, कुंआ कभी भी प्यासे के पास नहीं जाता है, न ही जा सकता है। किन्तु जैन दिवाकरजी महाराज में सन्त हृदय था, उन्होंने झोंपड़ी में जाकर उपदेश दिया तो महलों में जाकर भी; राजामहाराजाओं को भी ज्ञानामत से सन्तुष्टि दी। जब आपका चातुर्मास उदयपुर में था उस समय तत्कालीन महाराणा साहब की प्रार्थना को स्वीकार कर महलों में पधार कर उन्हें धर्मोपदेश देकर एक सच्चे सन्त हृदय की रक्षा की।
आपने तो अपने जीवन का लक्ष्य यही बना रखा था कि "मुझे तो समाज की विषमता रूपी कोढ़ को मिटाना है।" आपके धर्मोपदेश श्रवण कर हिन्दू कुल मेवाड़ाधिपति ने विशेष दिनों और पर्वो पर पशुबलि बन्द करवाने के आदेश प्रसारित किये और अगते रखने की घोषणा करवायी। यही इस सन्त के जीवन की सार्थकता है ।
सन्त दुनिया के लिए आशीर्वाद और वरदान होते हैं। सन्त पाप से झुलसी हुई दुनिया को शान्ति प्रदान करने वाले देवदूत होते हैं। सन्त दुनिया के खून से भरे हुए, उजड़े और सुनसान रेगिस्तान में शान्ति की मन्दाकिनी प्रवाहित करने वाले अक्षय स्रोत होते हैं, वे एक ऐसे प्रकाशमान स्तम्भ होते हैं जो दुनियाँ को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। सन्त दिवाकरजी महाराज के जीवन का भी यही लक्ष्य था
कम खाना, कम सोना, कम संसार से प्रीति ।
गम खाना, कम बोलना, ये हो बड़ेन की रीति ॥ मुनिश्री ने इस युग में जन्म लेकर विश्व-कल्याणार्थ अपना सन्देश देकर लोक-कल्याण एवं लोक-मंगल का मार्ग मानव-मात्र के लिए आलोकित किया। आपने संसार को सुख-शान्ति का मार्ग सुझाया । आप अपने परमपावन आचरण के कारण सन्तों की परम्परा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं । सन्त-महात्मा संसार को सुख-शान्ति और समृद्धि का सच्चा मार्ग प्रदर्शित करने वाले जागरूक युग पुरुष होते हैं । जैन दिवाकरजी महाराज का जीवन चरित्र भी एक ऐसी ही खुली पुस्तक है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org