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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३३०:
"मिलावट करना घोर अनैतिकता है।" -----तीर्थंकर चौ० ज० विशेषांक, पृ० ३४
चूंकि अर्थ ही अनर्थ का मूल है, व्यक्ति अपनी नैतिकता को ताक में रखकर अधिकाधिक लाभ की आशा में लोभ की ओर बढ़ता है। सच भी है लाभ लोभ को बढ़ाता है । इस प्रवृत्ति की ओर इंगित कर दिवाकरजी महाराज ने असंख्य लोगों को नया प्रकाश दिया। हृदय-परिवर्तन और समता
हिंसक, धूर्त, शिकारी और यहां तक कि कसाई, खटीक, भील आदि अपनी आसुरी वृत्तियां भूल गए इस दिवाकर के प्रकाश में । इसके मूल में हमारे चरितनायक की वाणी का माधुर्य था जो सहसा अपनी ओर आकृष्ट कर लेता। आपने अनेक नरेशों को उद्बोधन दिया एवं क्षेत्रीय परिसीमा में हिंसा न हो ऐसे प्रयत्न ऐतदर्थ प्रस्तर-अंकित लेख आज भी प्रमाण हैं।
कतिपय उदाहरण सिद्ध करते हैं कि दिवाकरजी महाराज ने अपने समता सिद्धान्त के बल पर हृदय-परिवर्तन की सफल प्रक्रिया अपनाई है। गंगापुर (मेवाड़) के मोचियों ने अपना जीवन ही बदल दिया था । सर्वश्री अमरचन्दजी, कस्तूरचन्दजी व तेजमलजी के नाम उल्लेख्य हैं जिन्होंने दुर्व्यसनों का त्याग कर शुद्ध जीवन व्यतीत करने का व्रत लिया। पोटला ग्राम के मोचियों व रेगरों को सद्बोध देकर भी दिवाकरजी महाराज ने अभूतपूर्व कार्य किया। जब दृष्टि बदली तो जीवन ही बदल गया।
केसूर गाँव में इकट्ठे होकर ६० गाँवों के चमार पंचों ने मांस-मदिरा का त्याग किया। यह आशातीत प्रयास था। उसी परम्परा में अनेक उदाहरण सम्मुख हैं
सं १९८० इन्दौर के नजर मुहम्मद कसाई द्वारा हिंसा त्याग की प्रतिज्ञा । सवाई माधोपुर के खटीकों द्वारा जघन्य कार्य बन्द किया गया । सं० १९६६ नाईग्राम (उदयपुर) में ३-४ हजार भीलों द्वारा हिंसा त्याग की प्रतिज्ञा । सं० १९८२ नन्दवास के भीलों द्वारा वन में आग न लगाने की प्रतिज्ञा । सं० १९७० भीलवाड़ा-३५ खटीकों द्वारा पैतृक धन्धे का त्याग ।
यह था समता का प्रभाव और जादू । सदाचार परिवर्तन में समता
दिवाकरजी महाराज ने किसे प्रभावित नहीं किया ? समाज की नशों में व्याप्त वेश्यावृत्ति पर प्रवचन दिये तो उनके जीवन में सदाचार का प्रवर्तन हुआ। सं १९६६-जहाजपुर
वेश्या-नृत्य के दोषों पर प्रकाश डाला तो वेश्याओं को आत्मग्लानि हुई और उन्होंने अपना व्यवसाय परिवर्तन कर दिया। सं० १९८० पाली
मंगनी व बनी नामक दो वेश्याओं ने आजीवन शील पालन की प्रतिज्ञा की और सिणगारी ने एक पुरुषव्रत का संकल्प लिया।
-जैन दिवाकर, पृ० १६६ यही हाल था जोधपुर में । सं० २००५ का वर्षावास । वहाँ की वेश्याओं (पातरियाँ) द्वारा अपने घृणित पेशे को तिलाजलि दी गई।
उपयुक्त संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट है कि शताब्दी पुरुष जैन दिवाकरजी महाराज का समता-सरल प्रभाव डालने लगा था। उनके व्याख्यान श्रवण कर लाखों लोगों ने अपना जीवन बदला । समता-समाज की सच्ची तस्वीर बनाने वाला चितेरा पार्थिव रूप में आज भले ही नहीं हैं, उनके उपदेश आज भी हमारा पथ-प्रदर्शन कर रहे हैं । आवश्यकता है हम इन पर आचरण करें।
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