________________
श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणे : २७० :
नहीं । अमेरिका आदि भौतिकसमृद्धि-सम्पन्न देश कितने अशांत, व्याकुल, तनावग्रस्त हैं, यह सभी जानते हैं । मुनिश्री ने हमें भौतिक समृद्धि के साथ आत्मसमद्धि का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया। हमारे नैतिक संस्कारों को प्रबुद्ध किया। किसी स्थूल योजना को साकारित करना सरल कार्य है, परन्तु नैतिक तथा चारित्रिक अमूर्त योजना को मूर्तरूप देना श्री चौथमलजी जैसे युगपुरुष का ही कार्य था।
"वे युग को पहचानने वाले युगद्रष्टा थे, युग की धारा को मोड़ने वाले युग-पुरुष थे । जिन अन्ध-विश्वासों, कुरीतियों व सड़ी-गली परम्पराओं के दमघोंटू वातावरण में मानव-समाज छटपटा रहा था, जिन बेड़ियों को तोड़ते न बन रहा था और न निभाते-उन बेड़ियों को तोड़ डालने का आह्वान किया उन्होंने, आह्वान ही नहीं, मनुष्य में शक्ति व स्फूर्ति का प्राण फूंक कर उसे सत्य सादगी-सदाचार के मुक्त वायुमण्डल में जीने का अवसर प्रदान किया।"
परिचय व संपर्क सूत्रजैन धर्म व साहित्य पर विशेष रुचि तथा अध्ययन । चिन्तनशील लेखक, प्राध्यापक-इस्लामिया कालेज, श्रीनगर पता-साजगरी पोरा, श्रीनगर (काश्मीर)
------------2 श्रद्धा-सुमन
आर्या श्री आज्ञावती (चण्डीगढ़) चौथमल मुनिराज की, महिमा का न पार। याद जिन्हें है कर रहा, सारा ही संसार ।। पुण्यवान गुणवान थे, वक्ता कवि विद्वान । तप, जप,त्याग वैराग और विमल ज्ञान की खान ।। जो भी आया चरण में, बड़े प्रेम के साथ । दया, दान की, ज्ञान की कही उसे ही बात ।। मद्य, मांस औ छ त औ, चोरी और शिकार । छोड़ गए थे बहुत जन, वेश्या और परनार ॥ अनगिनती का कर दिया, ऐसे ही कल्याण । मिलते मुश्किल आजकल उनसे दया निधान ।। गद्य-पद्य में आपने, रचे अनेकों ग्रन्थ । जैन दिवाकर की नहीं, महिमा का कुछ अन्त । 'आज्ञा' जो पंजाब की, लघु-सी आर्या एक । श्रद्धा के अर्पित करे, सात सुमन सविवेक ॥
M-0--0--0-0--0---
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org