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श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ्
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २५६:
गीत
(तर्ज-घर आया मेरा परदेशी........ दिवाकर जग में छाया,
जन-जन ने मिल गुण गाया ।।टेर।। नीमच नगरी का प्यारा गंगा - केशर - का तारा
भाग्य सुहाना जो लाया ॥१॥ प्राची में ज्यों सूर्य खिला "दिवाकर" त्यों हमें मिला
प्रसिद्धवक्ता पद पाया ।।२।। संयम-में अनुरक्त बना हर मानस था भक्त बना
धर्म-ध्वजा को फहराया ॥३॥ उपदेशों की अजब छटा मानो बरसी मेघ घटा
जीवन सुन-सुन सरसाया ॥४॥ जैन - अजैन जिसे जाने दिव्य गुणि जिनको माने
"नवीन" सुखद संघ कहलाया ।।५।।
भी नवीन मुनिजी (मजज, मारवाङ)
भी नवीन मुनिजी (मजल, मारवाड़)
(तर्ज- मैं तो आरती उतारू रे........) मैं तो पल-पल पुकारूँ रे, जय जैन दिवाकर की सदा होवे जय-जयकार, महावीर शाला में भक्तों के भरे हैं भण्डार, महावीर शाला में सदा होते है मंगल-गान. प्यारे भारत में पिता के प्यारे दुलार, चौथमल गुरुवर है-२ माता केशर के नन्द सुकुमार, चौथमल गुरुवर है किया कोटा शहर को निहाल, चौथमल गुरुवर ने
___-जिनको पुकारो रे, प्यारे भारत में........ सदा होती है सम भाव. जिनके जीवन-दर्शन में संगठन का नहीं है अभाव, जिनके जीवन-दर्शन में पाया श्रद्धा और स्नेह का भाव, जिनके शासन में-२ देखो हर घड़ी-२ नया चमत्कार, प्यारे गुरुवर में-२ जीवन में नया प्रकाश फैलाया, प्यारे गुरुवर में-२ जिनका नाम बड़ा प्रियकार, सारे शासन में-२ जिनके हृदय में ज्ञान का भण्डार, प्यारे गुरुवर में जिनकी सदा होती है जय-जयकार सारे शासन में
चौथमल जन्म शताब्दि मनाओ रे..."
श्री सुरेशचन्द जैन (मंदसौर)
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