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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
मुनि श्री चौथमल जी एक विचक्षण समाज शिल्पी
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : २५८ :
# डा० नेमीचन्द जैन ( इन्दौर ) एम. ए., पी-एच. डी.
[विरल होता है ऐसा कि धरती पर कोई विचक्षण प्रतिभा जन्मे और अपने युग को एक स्पष्ट समाज- दर्शन प्रदान करे, अपने समकालीन मनुज का नये सिरे से भाग्यविधान करें, उसके सुख-दुःख का साझेदार बने, अन्धविश्वासों को चुनौती दे चमत्कार की अपेक्षा स्वाभाविकताओं, मौलिकताओं और तर्कसंगतियों में गहन आस्था रखे, तथा उनके लिए प्राणपण से सक्रिय हो, एवं धर्म को सुभीता न मान अपरिहार्य माने - इस संदर्भ में यदि मुझसे पूछा जाए कि ईस्वी सन् १८७५ और १६७५ के मध्य ऐसे विचक्षण समाज-शिल्पियों का सिरमौर कौन है, तो में गर्व से मस्तक उठाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज का नाम लूंगा, जिन्होंने न केवल व्यक्ति का भाग्य निर्मित किया वरन् धर्म का नवसीमांकन भी किया और उसके लिए सर्वथा अछूते सेवा क्षेत्र उद्घाटित किये । ]
मुनिश्री चौथमलजी महाराज का जन्म उतरती उन्नीसवीं शताब्दी (ईस्वी) में हुआ, किन्तु उनका व्यक्तित्व चढ़ती बीसवीं में प्रकट हुआ । इसी अवधि में यह भी स्पष्ट हुआ कि धर्म और समाज दो अलग-अलग चेतनाएँ नहीं हैं, भारत में तो ये जुड़वां हैं । इस संदर्भ में धर्म को हम सामाजिक आचार- शास्त्र भी कह सकते हैं, जो एक तरह से सदाचार की ही एक रूपाकृति है । मुनि श्री चौथमलजी महाराज के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कोरमकोर धार्मिक सिद्धान्तों की बात नहीं की, अपितु धर्म मनुज को कितना सुखी, निरापद, निर्भीक, आश्वस्त और निश्चिन्त निराकुल बना सकता है, इसे व्यवहार में सिद्ध किया । ऐसा शायद ही कोई विषय हो जो उनके प्रवचनों की उदार परिधि से बच पाया हो, वस्तुतः उनके विचार आँख उघाड़ने वाले हैं, पीढ़ियों में लोकमंगल का अलख जगाने वाले हैं, और धर्म को एक सुस्पष्ट रूप प्रदान करने वाले हैं ।
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मुनिश्री जीवन में अंधाधुंध, निरुद्देश्य या तर्कहीन ढंग से आचरण के पक्ष में नहीं हैं । वे उसकी एक प्रांजल योजना और वस्तुपरक निर्मम समीक्षा के हिमायती हैं । वे कर्मनिष्ठ हैं, अप्रमत्त हैं, दुर्द्धर कर्मयोगी है, और चाहते हैं कि जो धर्म के क्षेत्र में प्रविष्ट हो वह आँख पर पट्टी न बांधे, सिर झुकाकर एक बन्दी, या गुलाम की भाँति हर विचार को स्वीकार न करे, विवेक की भूमि पर खड़े होकर विचार करे; इसीलिए उन्होंने ब्यावर की एक सभा में 5 सितम्बर सन् १९४१ को कहा
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