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: २६१ : एक विचक्षण समाज शिल्पी
श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।
उनकी उपलब्धियों का अत्यन्त विश्वसनीय साधन है। उन्होंने जो कहा वह चरित्र की वर्णलिपि में ही कहा । चमत्कारों के सम्बन्ध में उनके विचार हैं-'बहुत से लोग चमत्कार को नमस्कार करके चमत्कारों के सामने अपने-आपको समर्पित कर देते हैं। वे बाह्य ऋद्धि को ही आत्मा के उत्कर्ष का चिह्न समझ लेते हैं, और जो बाह्य ऋद्धि दिखला सकता है, उसे ही भगवान् या सिद्ध पुरुष मान लेते हैं, मगर यह विचार भ्रमपूर्ण है। बाह्य चमत्कार आध्यात्मिक उत्कर्ष का चिह्न नहीं है और जो जानबूझकर अपने भक्तों को चमत्कार दिखाने की इच्छा करता है और दिखलाता है, समझना चाहिये कि उसे सच्ची महत्ता प्राप्त नहीं हुई है। इसी तरह उन्होंने कहा है कि 'मिथ्यात्व से बढ़कर कोई शत्रु नहीं है।' यह स्वीकृति भी क्रान्ति का एक बहुत बड़ा आधार प्रस्तुत करती है। मात्र इतने को लोक-जीवन में प्रतिष्ठित करा देने से समग्र क्रान्ति संभव हो सकती है, और व्यक्ति तथा समाज को आमूल बदला जा सकता है।
इतना ही नहीं, मुनिश्री मानव-मन के अद्भुत पारखी भी थे। वे भलीभाँति जानते थे कि मनुष्य भावनाओं का एक संभावनाओं से हराभरा पुंज है। क्रोध और क्षमा-जैसी परस्पर विरोधी अनुभूतियाँ उसके चरित्र की संरचना करती हैं, इसीलिए उन्होंने कहा-"आत्मशुद्धि के लिए क्षमा अत्यन्त आवश्यक गुण है। जैसे सुहागा स्वर्ण को साफ करता है, वैसे ही क्षमा आत्मा को स्वच्छ बना देती है।" इसी तरह उन्होंने कहा है-'अमत का आस्वादन करना हो तो क्षमा का सेवन करो । क्षमा अलौकिक अमृत है । अगर आपके जीवन में सच्ची क्षमा आ जाए, तो आपके लिए यह धरती स्वर्ग बन सकती है।'
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X इस तरह यदि हम मुनिश्री चौथमलजी महाराज के प्रवचनों का अभिमन्थन करते हैं तो हमें जीवन के लिए कई प्रकाशस्तम्भ अनायास ही मिल जाते हैं। इन प्रवचनों में जीवन की सच्ची झलक मिलती है और मिलता है अशान्ति, विघटन, विसंगति, संत्रास, तनाव, क्रोध, राग-द्वेष, अन्धविश्वास इत्यादि से जूझने का अभूतपूर्व साहस, शक्ति, विश्वास और परम पुरुषार्थ ।
परिचय एवं संपर्क सत्रप्रखर चिन्तक तथा निर्भीक लेखक, पत्रकारिता में यशस्वी : 'तीर्थ कर' मासिक के संपादक ६५, पत्रकार कॉलोनी, कानाडिया रोड, इन्दौर
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