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: २३३ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ |
-~- महामानव
महामानव नहीं होते हैं माता से पैदा
महामानव निर्माण होते विश्व की कर्मशाला में !!
यू तो इस जग में कई जन्म लेते और चले जाते, कुछ ऐसे भी महामानव होते हैं
जो कुछ देकर
अमरता पाते। गुजर जाता है उनका जमाना फिर भी हम जन्म लेने वाले
उन्हें याद करते, उन्हीं के आदर्शों और सिद्धान्तों को
जानकर, अमरता की राह की ओर
____ अग्रसर होते ! ऐसा ही एक महामानव !
इस पुण्य भूमि पर एक नया प्रकाश देकर, 'जैन दिवाकर' के नाम से
अपनी अद्भुत छवि से 'जगद्वल्लभ' बन कर ___भव्यी जीवों को
सत्बोध दिया था। विश्व में फिर से एक बार जैन धर्म का मर्म बताकर, भटके हुये पथिकों को,
राह पर लाकर; कई राजाओं, महाराजाओं, जमींदारों, जागीरदारों को अहिंसा का उपदेश सुनाकर,
डंके की चोट के साथ
६६ श्री अक्षयकुमार जैन, जोधपुर जैन धर्म के जयनाद से एक नया उद्घोष किया था। जग वैभव तुम्हें छल न सके, विचारों को न बदल सके, तुम ऐसे जिनधर्म मर्मी थे, सच्चे अटल कर्मी थे, पर-प्रकाशी तुम्हारा जीवन था, जिसे सच्चे दिल से जीया था। अनूठा चमत्कार तुमने दिखलाया, पत्थर दिल भी आँसू ले आया। जब विकराल मौत भी तुम से हार गई, तब मौत को गले लगाया था। जग का क्रम निभाया था, प्रकृति ने भी तुम्हारे लिये अश्क बहाया था। तुम्हारे, महा सुकर्मों से आज याद तुम्हारी जिन्दा है। पढ़-सुनकर, तुम्हारे जीवन को पाखण्डी होते
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