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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २३४ :
मिन्दा हैं।
उत्साह बन, नित्य तेरा
नया पथ स्मरण मात्र करने से, दिया करते।
जन, जीवन है यही आकांक्षा मेरी आच्छादित होता है,
कि हे ! पूज्य दिवाकर। तेरे आदर्शों से
तुम-सम इस भूमि पर एक मानव,
फिर से एक नया महा मानव बनने की,
दिवाकर बना दो राह पर, या फिर, अग्रसर होता है।
तुम्हीं एक बार महामानव !
फिर से न कभी मरते,
नव प्रकाश देकर, साया बन
दिवाकर के नाम को साथ है चलते।
"अक्षय" बना दो। निरुत्साह में वर समणो जिण दिवायरो
का प्राचार्य माधव श्री० रणदिवे, सतारा
(प्राकृत भाषा प्रचार समिति) जो णिहवमोहदिट्टी आगमकुसलो विरागचरियम्मि ।
अम्भुट्टिदो महप्पा धम्मो त्ति विसेसिदो समणो॥ सिरीकुदकुदायरिएणं पवयणसारम्मि समणवरस्स जं वण्णणं कयं तं सव्वं सिरीचउहमलमुणिणो विसए सच्चं होइ । जया जुव्वणोज्जाणम्मि मणुस्सो सुहेण विहरइ विसयसुहम्मि रमइ य, तया चउहमल्लो संसाराओ विरत्तो जाओ। अट्ठारसमम्मि वरिसे सो सिरीहिरालालायरियसमीवे पव्वज्जइ । तेण अप्पमत्तण मूणिधम्मो पालिओ।
सिरीचउहमलमुणी सत्त भासासु पारंगओ। आगमकुसलेण तेण सव्वधम्मसत्थाई पढियाइं । महुरवाणीए धम्मोवएसं काऊण तेण अणेगा जणा आवज्जिया। जिणाणुयाई सावगसाविगाओ अन्ने वि इत्थीपुरिसा तस्स पावयाणं सोउं जिणठाणगंसि आगच्छति ।
सिरीचउहमल मुणी अप्पणो तवोतेएण अविरयसाहणाए य दिप्पंतो सूरो व्व पगासेइ । सो य रटुसतो त्ति पसिद्धो । तेण जिपदिवायरपयं विभूसियं । अओ जिणदिवायरो सिरीचउहमलमुणी नामेण सो जाणिज्जइ।
तस्स मूणिवरस्स सरियस्स उवमा दिज्जइ। जहा सूरो अंधयारं नस्सइ, तहा तेण जणाणं अन्नाणंधयारो विणासिओ । जहा सूरो किरणेहिं पउमाइँ वियासेइ, तहा सो जिण दिवायरो सुवयणेहिं नरणारीकमलाइ पप्फुल्लं करेइ।
जिणदिवायरो तेयस्सी समणो । सो पंचसमिओ तिगुत्तो पंचेदियसंवुडो जियकसाओ दसणणाण चारित्त समग्गो संजदो य । नमो तस्स जिण दिवायरस्स।
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