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अपनी आप मिसाल थे
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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
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- स्वामी नारायणानन्दजी
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श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २३० :
जय जय जय मुनिराज जैन जग के हितकारी, स्वयं प्रेम साकार प्रेम के परम पुजारी । रहे सुनाते सदा कथायें प्यारी प्यारी, निज जीवन में किये प्रेम के चश्मे जारी ।
जिन शासन के अग्रणी अतिशय हृदय विशाल थे । जैन दिवाकर चौथमल अपनी आप मिसाल थे ||
निरत रहे वे सदा धर्म ही के विचार में, था उनका विश्वास रूढ़ियों के सुधार में । जीव दया ही सार समझ इस जग असार में, लगे रहे सानन्द अहिंसा के प्रचार में । सिद्ध संयमी सरल चित महा मनस्वी धीर थे, पर्वत सम वे अटल थे सिंधु सरिस गम्भीर थे ।
बरसाते थे सुधा सदा निज प्रवचन द्वारा, करते थे उपकार निरन्तर तन मन द्वारा । प्राप्त किया सम्मान लोक में जन-जन द्वारा । किया जगत कल्याण तपस्वी जीवन द्वारा । मिटा गये अज्ञान तुम सम्प के ज्ञान प्रकाश से, आलोकित जग हो उठा अलि अविद्या नाश से ॥
शास्त्रों का सिद्धान्त धर्म का मर्म बताया, गुमराहों के लिए सत्य का पथ दिखलाया । मानव, मानव- विश्व प्रेम पीयूष पिलाया, स्नेह सलिल से सींच हृदय का सुमन खिलाया ॥ कोमल चित करुणायतन राग रहित स्वच्छन्द थे, धन्य धन्य मुनिवर अमर आनन्दी आनन्द थे ।
पूज्य पिलाते रहे सदा प्रेमामृत प्याले, जागृत किया समाज खोल निद्रा के ताले । साधु-मार्ग के सन्त अमित गुणवन्त निराले, धन्य धन्य मुनिराज परम पद पाने वाले । सराबोर हो प्रेम में मुनि व्रत पूर्ण निभा गये, भक्तों को कर मुदित मन आप मोक्ष पद पा गये ॥
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