________________
: २२६ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर-म्मृति-ग्रन्थ ।
जागीरी में शिकार बन्द, मांस बन्द एवं दारू बन्दी के पट्ट लिख दिये; जिसका पालन वर्तमान में भी हो रहा है।
पूज्यश्री ने कई संघों में फूट को मिटाकर आपस में वात्सल्य-भाव स्थापित किया। कई शहरों में अगते, पर्व दिनों में रखवाये जिसका पालन आज भी हो रहा है । पाली में चार अगते उनकी स्मृति को आज भी हरी करते हैं । यह था उनका अपूर्व पुण्यवाणी का प्रभाव ।
आपश्री बेजोड़ प्रवचनकार थे। आपका प्रवचन का स्रोत जीवन-निर्माण की दिशा में प्रवाहित हुआ और उसने न जाने कितनी बंजर मनोभूमियों को उर्वरा में बदल दिया। वे आजीवन जैन शासन को विकास की पराकाष्ठा तक पहुँचाने का भरसक प्रयत्न करते रहे। उनके बहुमुखी रंगबिरंगे व्यक्तित्व के शीतल निर्झर से अनगिनत धारायें फूटी, विविध दिशागामिनी बनीं जिनसे क्षेत्र, धार्मिक दृष्टिकोण से उर्वर और बीजापन के योग्य बन गये । विकास के अनेक आयाम स्वत: उद्घाटित हो गये। साधु-साध्वियों की वृद्धि हुई। विहार-क्षेत्र व कार्यक्षेत्र विस्तार पाने लगे।
आपश्री ने स्वयं उच्चकोटि का साहित्य और साहित्यकारों का सृजन किया था। आगम शोधकार्य आपकी अलौकिक मेधा और दूरदर्शिता का सुपरिणाम था। ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति देने का प्रयास अज्ञ व्यक्ति की नक्षत्र गणना जैसा है। उनके आभावलय की तेजोमय रश्मियाँ युग-युग तक हमारे जीवन-पथ को प्रकाशित करती रहेंगी। उनकी अमिट छवियाँ चिरकाल तक हमारे हृदय-पटलों पर अंकित रहेंगी।
अतः उस ज्योतिर्मय दिव्यपुंज की इस जन्म शताब्दी पर हृदय की समस्त शुभ भावनायें श्रद्धाञ्जली रूप अर्पित कर, मैं अपने आपको धन्य और कृतकृत्य अनुभव करता हूँ।
++++
+++++++
+
+ +++++++
+ + +
+++++
+
+
+ + +
+ + +
जैन दिवाकर अभिनन्दन है
-श्री विपिन, जारोली (कानोड) जैन दिवाकर अभिनन्दन है। जप-तप-संयम शम के साधक, महा मुनीश्वर वन्दन है । जैन दिवाकर अभिनन्दन है । श्रमण संस्कृति के उन्नायक,
सत्य-अहिंसा के चिर गायक, मुक्ति-मार्ग के अमर पथिक तव, कोटि कोटि जन का वन्दन है।
_ जैन दिवाकर अभिनन्दन है ।
राव-रंक के तुम उपदेशक,
शूद्र जाति के तुम उद्धारक, मूक-प्राणियों के तुम रक्षक, जिनवाणी के जीवन-धन है ।
जैन दिवाकर अभिनन्दन है । प्रसिद्ध वक्ता, पण्डित, मुनिवर,
जैन - जगत के पूज्य दिवाकर जन्म - शती पर गुरुवर तुमको, वन्दन है-अभिनन्दन है ।
जैन दिवाकर अभिनन्दन है।
For Private & Personal Use Only
++
+
+ + +
+
+
+ ++
+
+
+
+
+
+
Jain Education International
www.jainelibrary.org