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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
साधु हैं | मर्यादित उपकरण रखते हैं । आज यहाँ, कल वहीं, कभी जंगल में, तो कभी झोंपड़ी में, कभी महल में, तो कभी टूटे-फूटे मन्दिर में, मठों में रात गुजारनी होती है; इसलिए ऐसी कोई भी बहुमूल्य वस्तु हम नहीं स्वीकारते ।"
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २२० :
नवाब साहब उनकी निर्लोभवृत्ति से और अधिक प्रभावित होकर बोले- 'क्या मैं इतना बदकिस्मत कि मुझे खिदमत करने का मुतलक मौका भी किबला नहीं देंगे ?"
प्रसन्न मुद्रा में मुनिश्री बोले - "नहीं, आप जैसे नरेश बदकिस्मत नहीं भाग्यशाली हैं कि सत्संग में आपकी रुचि है । साधु चाहे वह भी किसी धर्म का अनुयायी हो, समाज को तो 'कुछ-नकुछ देता ही है न ! आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो अपनी कुछ एक दुष्प्रवृत्तियाँ ही दे दीजिये । जीवन पर्यन्त आप जीवों का शिकार और मद्य - मांसादि सेवन का त्याग कर दें ।"
नवाब साहब ने मुनिश्री चौथमलजी महाराज के समक्ष तीनों का ही त्याग का अहद लिया । रियासत में महाराजश्री के प्रवचनों में आम जनता से रुचि लेने की अपील भी उन्होंने की। ऐसी थी उनकी वृत्ति जो सहज ही हृदय परिवर्तन की भाव-भूमिका उत्पन्न कर दिया करती थी । 'कोई कवि बन जाए सहज सम्भाव्य है' वाली स्थितियाँ जीवन में सामान्यतया बनती नहीं है । काव्य प्रसव प्रकृति की अनुपम देन है । आपने इस सन्दर्भ में भक्तिरस के हजारों पद, उपदेशात्मक स्तवन और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ कविताएँ, दोहे, कवित्त आदि लिखकर उन्हें जनसामान्य में पर्याप्त लोकप्रिय बना दिया था। आज भी मेवाड़, मालवा और हाड़ौती अंचलों में ऐसे लोग सैकड़ों की तादाद में मिल जाएँगे जिन्हें उनकी रचनाएँ कण्ठस्थ हैं । उनके सुधारमूलक गीत बहुत से समारोहों में आज भी गाये जाते हैं ।
संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, गुजराती, राजस्थानी और मालवी के वे अधिकृत विद्वान् थे और अपने लेखन और प्रवचनों में इनका बराबर उपयोग किया करते थे । निग्रन्थ प्रवचन', 'भगवान् महावीर का आदर्श जीवन', 'जम्बूकुमार', 'श्रीपाल', 'चम्पक', 'भगवान नेमिनाथ चरित्र', 'धन्ना चरित्र', 'भगवान् पार्श्वनाथ', 'जैन सुबोध गुटका' आदि अनेक गद्य-पद्य कृतियों का प्रणयन आपने किया ।
इन साहित्यिक सांस्कृतिक-कृतियों पर किसी शोध छात्र को कार्य करना चाहिये । शताब्दिवर्ष में उनके साहित्य का अधिकाधिक एवं व्यवस्थित प्रचार-प्रसार होना चाहिये, उस पर चर्चा - गोष्ठियाँ आयोजित करना भी सामयिक होगा ।
वे वाग्मिता के अन्यतम धनी थे । उनकी वाणी में श्रोताओं को उद्वेलित कर देने वाली अद्वितीय चुम्बकीय शक्ति थी । गहरे पैठ जाने वाली उपदेशात्मक प्रवृत्ति से अभिप्रेरित होकर उन्होंने अज्ञानियों, अशिक्षितों, भूले-भटकों, संशयग्रस्तों के मन में सच्चरित्रता और निष्ठा का अखण्ड दीपक प्रदीप्त किया ।
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