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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
__ श्रद्धा का अर्घ्यः भक्ति-भरा प्रणाम
शताब्दी पुरुष को प्रणाम!
* आचार्य श्री आनन्द ऋषि जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज का व्यक्तित्व अद्भुत था। वे एक शताब्दी पुरुष थे। ईसा की उतरती उन्नीसवीं शताब्दी में उनका जन्म हआ और चढ़ती बीसवीं शताब्दी में उनके साधक जीवन का विकास हुआ। उनका तपस्तेज, वाणी-वैभव और आध्यात्मिक बल शताब्दी के साथ-साथ निरन्तर चढ़ता ही गया। दो शताब्दियों पर उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप पड़ी है। इतना तेजस्वी, निर्भीक, निर्मल और मधुर, कोमल स्वभाव एक ही व्यक्ति में देखकर लगता है, प्रकृति कितनी उदार है. जिसे देती है. सब गण दिल खोलकर देती है।
_जैन समाज पर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय व भारतीयेतर वर्ग पर भी उनके अगणित-असीम उपकार हैं। हजारों दलित-पतित जीवनों का उद्धार उन्होंने किया और उनको सन्मार्ग का बोध दिया। लाखों जीवन उनके पारस-स्पर्श से कंचन हो गये।
जीवदया, सदाचार-संस्कार-प्रवर्तन, तथा संघ एकता के हेतु किए गए उनके महनीय प्रयत्न इतिहास की एक यशोगाथा है ।
मैं महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश-राजस्थान-हरियाणा-पंजाब आदि प्रान्तों में विचरण करके आया, श्री जैन दिवाकरजी महाराज की सर्वत्र प्रशंसा सुनी, कहीं पर भी उनके विषय में अपवाद का एक शब्द भी नहीं सुना, उनके जीवन की यह बहुत बड़ी विशेषता है।
मैं अपनी असीम हादिक-श्रद्धा के साथ शताब्दी के उस महान् सन्तपुरुष को प्रणाम करता हूँ।
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