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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
श्रद्धा का अर्घ्य : मक्ति-भरा प्रणाम : २१२:
जगत्-वल्लभ मुनिश्री चौथमलजी का दृष्टिकोण सदैव व्यापक रहा है। उन्होंने राजा और रंक में भेदभाव न रखते हुए सभी श्रेणियों की जनता में भगवान् महावीर के सिद्धान्तों का समान रूप से प्रचार किया । मुनिश्री ने समाज में घृणास्पद समझे जाने वाले मोची, चमार, कलाल, खटीक और वेश्याओं तक को अपना संदेश सुना कर उनके जीवन को ऊँचा उठाने की दिशा में भगीरथ प्रयास किया। कितने ही हिंसक कृत्य करने वाले व्यक्तियों ने आपके उपदेशों से प्रभावित होकर आजीवन हिंसा का त्याग किया एवं कई लोगों ने शराब, मांस, गांजा, भांग तथा तम्बाकू नहीं सेवन करने की प्रतिज्ञाएं की। इस प्रकार मुनिश्री ने अपने आपको धर्मोपदेश एवं जीवदया के महान् कार्य में लगा दिया।
जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज का शताब्दी वर्ष हमारे जीवन का मंगलमय प्रसंग है। हमें चाहिये कि हम उनके आदेशों के अनुरूप मानव-जाति के कल्याणकारी दिशा में रचनात्मक कदम उठा कर उस महापुरुष के प्रति अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करें। तेजस्वी पुण्यात्मा
- बाबूलाल पाटोदी, इन्दौर परमपूज्य जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज ने सौ वर्ष पूर्व भारत भूमि में जन्म लेकर भगवान महावीर के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का जो कार्य किया, वह सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
उन्होंने धर्म-प्रचार हेतु जिस क्षेत्र को चुना, उसे आज की भाषा में पिछड़ा हुआ क्षेत्र कहते हैं। भगवान महावीर ने आज से २५०० वर्ष पूर्व अपनी दिव्य ज्योति द्वारा उस समय व्याप्त कथित उच्चवर्णीय वर्गों द्वारा समाज में धर्म के नाम पर फैलाये जा रहे वितण्डावाद एवं हिंसा का मकाबला निम्न से निम्न अर्थात अन्तिम आदमी की झोंपड़ी तक जाकर करने को प्रोत्साहित किया। राज्यवंश में जन्म लेकर जिस महामानव ने भेद-विज्ञान प्राप्त कर आत्म-शक्ति को जागृत किया, स्वयं वीतरागी हुए व विश्व को विनाश से बचाया ।
एक सौ वर्ष पूर्व जन्मे मुनिश्री चौथमलजी ने आदिवासियों के बीच जाकर उनसे मांस व शराब छुड़वाई तथा उन्हें मनुष्य बनने की प्रेरणा दी । मुनिश्री के समक्ष राजा एवं रंक का कोई भेद नहीं था। वे निस्पृह भाव से, समान रूप से समताभाव धारण किये हुए राजाओं और रंकों को भगवान् का उपदेश देते थे । सरल, मनोहारी, ओजस्वी वाणी जो प्रत्येक व्यक्ति के हृदय को छूती थी, उनके उपदेश की शैली हृदयस्पर्शी थी। स्वयं त्याग कर दूसरों को प्रेरित कर अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य व्रत को झोंपड़ियों तक पहुंचाने वाले उस महान् तेजस्वी पुण्यात्मा का शताब्दी-महोत्सव मना कर हम स्वयं अपने कर्तव्य-पथ पर चलने को अग्रेषित हो रहे हैं।
पूज्य मुनिश्री के चरणों में मेरा शत-शत वन्दन !
अहिंसा-धर्म के महान् प्रचारक
-डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ प्रसिद्ध वक्ता जैन दिवाकर स्वर्गीय मनिश्री चौथमलजी महाराज श्वेताम्बर स्थानकवासी शाखा से सम्बद्ध, वर्तमान शताब्दी के पूर्वार्ध में एक महान प्रभावक जैन सन्त हो गये हैं। सन् १८७७ ई० में नीमच (मध्यप्रदेश) में जन्मे और १८६५ ई० में मात्र १७-१८ वर्ष की किशोर वय में साधु-दीक्षा ग्रहण करने वाले इन महात्मा का ५५ वर्षीय सुदीर्घ मुनि-जीवन अहिंसा एवं नैतिकता
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