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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
:२१७: श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
मुनिश्री की व्याख्या शैली बड़ी आकर्षक और प्रभावशाली थी। आपके व्याख्यान में जनजैनेतर सभी वर्ग के श्रोतागण आते थे । अधिकारी वर्ग और राजो-महाराजा भी हाजिर होते थे।
आपके उपदेश से कई राजा-महाराजाओं ने शिकार खेलना और माँस खाना छोड़ दिया था। शराब पीना कइयों ने बन्द कर दिया था।
उनके प्रभावशाली प्रवचनों का ही यह परिणाम है कि आज कई जगह हिंसक प्रवृत्तियाँ बन्द कर दी गई हैं।
इन कार्यों में भी उनका एक प्रशस्त-कार्य जोकि स्थानकवासी इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायगा 'संघ ऐक्य योजना' को वेग देने का है। स्थानकवासी समाज में फैली हुई ३२ सम्प्रदायों को दूर कर एक आचार्य, एक समाचारी, एक श्रमणसंघ और एक श्रावक संघ की जो योजना कान्फ्रेन्स ने बनाई थी; उसकी स्वीकृति के लिये माननीय श्री फिरोदियाजी के नेतृत्व में एक डेप्युटेशन सर्वप्रथम जैन दिवाकरश्री चौथमलजी महाराज के पास गया था। तब आपने इस योजना पर अपनी स्वीकृति देकर इसे आगे बढ़ाने के लिए क्रान्तिकारी कदम भी उठाया था। ब्यावर में जिन पाँच सम्प्रदायों ने अपनी शास्त्रोक्त पदवियों और सम्प्रदायों का त्याग कर वीर वर्धमान श्रमण संघ को स्थापना की और एकत्रित हुए उसमें जैन दिवाकरजी महाराज का अग्रगण्य भाग रहा है।
-चुन्नीलाल कामदार
श्रद्धा के सुमन
4 मदन मुनि 'पथिक' सामाजिक जीवनोत्थान की गरिमा में परिपूर्ण मानवता का विकास ही उसकी चरम स्थिति है। जिस प्रकार किसी मंजिल को प्राप्त करने के लिए सीढ़ियों की आवश्यकता होती है उसीप्रकार मानवता की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त करने के लिए एक सबल साधन की आवश्यकता है तो साधना बिना मार्ग-दर्शन के प्राप्त नहीं हो सकती।
मार्ग-दर्शन उन्हीं प्रकाश से मिल सकता है जो स्वयं प्रकाश-पुञ्ज हो।
जिस समय जैन समाज में बिखराव की कड़ियाँ उग्र-से-उग्रतर होने जा रही थीं उस समय ऐसे एक महापुरुष की वाणी कर्ण गह्वरों में गूजी, फलश्रु ति यह हुई कि हम नजदीक आ गये । उन महान् आत्मा का नाम था जैन दिवाकर प्रसिद्ध वक्ता जगद्वल्लभ संगठन योजना के अग्रदूत श्री चौथमलजी महाराज साहब ।
यौवन की पगडण्डी पर कदम रखा ही था, भोग की बहार छनछनाहट करके सामने हाथ पसारे खड़ी थी; तभी वैराग्य की आवाज उठी कि चौथमल ! तु एक सीप में बंधने के लिए य नहीं आया है । तेरा तो अखिल विश्व ही साधना-स्थल है । "उतिष्ठ जागृत ! प्राप्य वरान्नि बोधत" उठो, जागो व सोइ हुई मानव-जाति को अपने कर्तव्य का बोध कराओ। यह उद्घोषणा सुनकर के चतुर्थमल को कर्तव्य-बोध को झंकार सुनायी दी। सर्वस्व का परित्याग करके विरोध की परवाह न करके निकल पड़े । स्वयं को तपाया, खपाया और संसार को मानवता का अमर संदेश सुनाया। मानवता के उस सन्देशवाहक को कोटिशः प्रणाम !
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