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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ||
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति भरा-प्रणाम : १६६:
मुनि श्री कीर्तिचन्द्रजी 'यश' (शक्ति नगर, दिल्ली)
आप एक चमकते मोती थे.
आप एक जगमगाती ज्योति थे । आप एक महकते हुए गुलशन थे,
आप एक जलती हिंसा को चुनौती थे।
(२) तेज आँखों में, मुह पे लाली थी,
शान्त मुद्रा, जबाँ रसीली थी। क्या-क्या बतलाऊँ आपकी सिफ्तें,
आपकी हर अदा निराली थी ॥
जैन-दिवाकर ज्योति । * मुनि श्री कीर्तिचन्द्रजी 'यश' (शक्ति नगर,
सच्चे साधक थे, सत्यरक्षी थे,
सत्य वक्ता थे, आत्मलक्षी थे । सीधा-सादा सा, सच्चा जीवन था,
आप मुनिराज ! शुक्लपक्षी थे ।
॥
जिनवाणी के आप अध्येता थे,
_अनेक ग्रन्थों के आप प्रणेता थे। सन्त निस्पृह थे, सच्चे साधु थे,
आप सच्चे समाज नेता थे। तूने अन्धों को रोशनी बख्शी,
को ताजगी बख्शी । तेरे फैजो-कदम के क्या कहने !
तूने मुर्दो को जिन्दगी बख्शी ॥
*
जगद्वल्लभ थे, सबके प्यारे थे,
____ सन्त-सतियों के तुम सहारे थे । राजमहलों से झोंपड़ी तक में,
हमने चर्चे सुने तुम्हारे थे ॥ जैन दिवाकर, चौथमल मुनि,
आत्म-तेज की ज्योति चिरन्तन । पुण्यमयी इस जन्म-शती पर;
स्वीकृत कर लीजे अभिनन्दन ॥
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