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श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २०८:
(१)
जैन दिवाकर दिव्य द्वादशी
१. कविरत्न चन्दन मुनि, पंजाबी
(२) जिनके जप के तप के आगे
जैन दिवाकर दया दिवाकरझुकता गया जमाना।
ही थे इक वह दुजे। जैन दिवाकर चौथमल्ल की
जिनके पावन चरण कमल को मुश्किल महिमा गाना ।। __ प्रजा प्रेम से पूजे ॥
(३)
नाम अमर है, काम अमर है
उनका जग के अन्दर । निर्मल यशः कीति से उनकी
गुजित धरती-अम्बर ॥
ज्ञान-ध्यान का दया-दान का
शुभ सन्देश दिया था। दुष्कर्मों से दानव थे जो
मानव उन्हें किया था।
अपना या बेगाना है यह
भेद नहीं था मन में। राना-रंक सभी थे सम ही
उनके मधु जीवन में ॥
सात्विक-आत्मिक उन्नति कारक
परिमित लेते भिक्षा। श्रावक, श्रमण अनेक बनाये दे करके हित शिक्षा।
(८) शान्त, दान्त, निन्ति बड़े थे
गहरे आगम - वेत्ता। दुनिया को हैं दुर्लभ ऐसे
न्याय-नीति के नेता ॥
आतम-भेद खेदहर मिलता
मिलता पथ अविनाशी। चातक-सी थी दुनियाँ उनकी
वचनामृत की प्यासी॥
सफल आप थे वक्ता, लेखक
सफल आप इक कवि थे। जन-जन के जो मन को मोहे
सत्य छिमा की छवि थे।
जब तक रहे जगत के अन्दर
चन्द्र सूर्य से साजे । उत्तम संयम पाल अन्त में जाकर स्वर्ग विराजे ॥
(१२) पार अपार गुणों का उनके
"चन्दनमुनि" न पाता। चारु-चरण में चार-पांच ये _श्रद्धा सुमन चढ़ाता ।।
जनम, निधन, दीक्षा तीनों को
सूरज वार सहाया । बन तेजस्वी सूरज-से ही
दुनियां को दिखलाया।
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