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श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ ।
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम :१६०:
*** शतश:प्रणाम ! **
डॉ० शोभनाथ पाठक एम. ए. (हिन्दी-संस्कृत), पी. एच. डी. साहित्यरत्न (मेघनगर)
जै-सा नाम दिवाकर वैसी दीव्य ज्योति अभिराम । न-ही तुला पर कोइ गुरुतर, शतश: बार प्रणाम ।। दि-या जगत को ज्ञान-धर्म, थाती अनुपम न्यारी। वा-तावरण सुवासित करती, मुनिवर कृपा तुम्हारी ।। क-रते हम गुणगान, गौरवान्वित जिससे संसार । र-म्य रूप तप से है निखरा, सबको मिला संवार ।। श्री-मुख से ज्ञानोदधि उमड़ा, जन-जन हित की वाणी। चौ-रासी योनी बन्धन से, मुक्त हुए कई प्राणी ।। थ–मा, पाप-अन्याय, अहिंसा-अपरिग्रह उफनाएँ। म-हा पुरुष के प्रति, श्रद्धा सागर उर में नहीं समाए ।। ल-क्ष्य जगत-कल्याण, धरा पर धर्म, कर्म उपकारी। जी-वन भर युगबोध, वन्दना हो स्वीकार हमारी ।। म-नुज मनुजता को परखे, संसार संवरता जाये। हा-हाकार शमन हो जाए, आकुल हृदय जुड़ावे ।। रा-ग-द्वेष, उन्माद-विषमता, कर वाणी से भागे । ज-प-तप-योग-साधनाओं से, भाग्य हमारे जागे ।। सा-नन्दित श्रद्धाञ्जलि अर्पित, करो इसे स्वीकार । ह-म विनयानत वन्दन करते, सबका हो उद्धार ।। ब-नी समन्वयमयी साधना, सुखी बने संसार ।
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