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: १७५ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-मरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।
जायेगा । अहिंसा का यही अर्थ है कि विश्व-बन्धुत्व की भावना अधिक समृद्ध हो, लोकोपकार के लिए सभी अपना योगदान दें और अच्छे गुणों को बढ़ायें । मानव मात्र के कल्याण का ख्याल रखें। जमाने के जो प्रश्न हैं, उन्हें विचारपूर्वक इन्सानी कदरों की प्रतिष्ठा द्वारा हल करने का प्रयास करें। आज भी दुनिया के सामने गरीबी, सामाजिक और आर्थिक असमानताओं आदि के मसले हैं। हमारा अधिक ध्यान इन चीजों का समाधान ढंढ़ने की ओर होना चाहिए।
___भगवान महावीर ने हमें सत्य, संयम, अहिंसा और अपरिग्रह के जो असूल बताए, मुनिश्री चौथमलजी का सारा जीवन इन्हीं की साधना और प्रचार-प्रसार में बीता था। उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि समाज-सुधार और मानव-उत्थान का जो कार्य उन्होंने किया था, उसको आगे बढ़ावें और अपने आचार-विचार में रचनात्मक शक्ति का विकास कर दूसरों को प्रभावित करें।
इन्हीं शब्दों के साथ अब मैं मुनि श्री चौथमलजी महाराज को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
[जन्म शताब्दी महोत्सव दिनांक ५ नवम्बर को देहली में प्रदत्त भाषण इसका सारांश अकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुआ ।]
चौथमनि चाल-चतुर
श्रमणसूर्य प्रवर्तक मरुधरकेसरी श्री मिश्रीमलजी महाराज
छप्पय मृदु वाणी मतिमंत महाज्ञानी मनमोहक, मद मत्सरता मार ममत्त मिथ्या मदमोडक । मांगलीक मुख शब्द महाव्रती महामनस्वी, मर्यादा अनुसार प्रचारक परम यशस्वी ।। मुनि गुणी मुक्ता मणी, जन जीवन के हिय हारवर, गंगा-सुत केसर-तनय चौथ मुनि चारु-चतुर ॥
कुण्डलिया भरी जवानी में करी, हरी विषय की झाल । मरि तिय फिर भी ना वरी, धरी शील की ढाल । धरी शील की ढाल, काम कइ कीना नामी। नहीं रति-भर चाह, पदवियें केइ पामी । अध्यात्मिकता पायके करी साधना हर घड़ी। उत्तम लोक में चौथ ने सुन्दर यश झोरी भरी ॥
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