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: १३५ : ऐतिहासिक दस्तावेज
श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ
प्रेरणा देते और उनकी तरफ से आज्ञाएँ या घोषणाएं प्रसारित की जातीं ताकि आम जनता उनसे प्रेरणा ग्रहण करे।
उस समय के शासक वर्ग में शिकार, मद्य-मांस, पश-बलि आदि व्यापक बुराइयां थीं और उनका प्रतिषेध करने, उन्हें धीरे-धीरे समाज से मिटाने के लिए सामूहिक परिवर्तन की अपेक्षा थी। श्री जैन दिवाकरजी महाराज जहाँ भी जाते, उनके प्रवचनों से शासकवर्ग प्रभावित होते और आम रिवाज के अनुसार गुरु-चरणों में कुछ भेंट रखने की पेशकश करते, तब श्री जैन दिवाकरजी महाराज उनसे यही भेट मांगते, "त्याग करो ! दया और सदाचार प्रचार में सहयोगी बनो।" आपश्री की प्रेरणा पाकर स्थान-स्थान पर ठाकुर-जागीरदार शासक, राजा, महाराजा आदि ने स्वयं, जीवहिंसा, शिकार, मद्य-मांस सेवन का त्याग किया और प्रजा में भी कुछ विशेष पर्व दिवसों पर, जैसे पर्युषण, महावीर जयन्ती, पार्श्वनाथ जयन्ती, जन्माष्टमी, अमावस्या, आदि दिनों में हिंसा आदि की निषेधाज्ञाएँ प्रसारित की। भगवान महावीर के बाद २५०० वर्ष में इस प्रकार का सामूहिक प्रयत्न पहली बार हुआ था, जब गांव-गाँव में इस प्रकार की अहिंसा-घोषणाएँ होने लगी थीं। जनता में जीवदया की प्रेरणाएं जग रही थीं। एक अच्छा वातावरण बन गया था। अगर श्री जैन दिवाकर जी महाराज १०-२० वर्ष और विद्यमान रहते, तो सम्भवतः ये अमारिघोषणाएँ पूरे भारत में गंज उठतीं।
राजस्थान, मालवा, मध्य प्रदेश के विभिन्न ठिकानों में हुई वे घोषणाएँ ऐतिहासिक महत्त्व के दस्तावेज हैं, जो युग-युग तक अहिंसा की गाथा को दुहरायेंगे, और जीवदया की प्रेरणा देंगे। आप पाठकों की जानकारी के लिए उन दस्तावेजों की अविकल प्रतिलिपियां अगले पृष्ठों पर प्रस्तुत हैं ।
2017
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