________________
श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
जीवदया और सदाचार के अमर साक्ष्य १४६
॥ श्री ॥
मुनि श्री चौथमलजी महाराज का आज मिति पौष सुदी ७ सम्वत् १६६१ को बनेडिया में पधारना हुआ । व्याख्यान सुन करके बहुत आनन्द हुआ । भेंटस्वरूप निम्नलिखित बातों का प्रतिज्ञा पत्र लिख करके महाराज श्री के नजर किया जाता है।
(१) जहाँ तक बन सकेगा महीने की दोनों एकादशी का व्रत (उपवास) वा अमावस्या के रोज एक वक्त भोजन किया जायगा ।
Jain Education International
(२) महीने की दोनों एकादशी माहवारी वा अमावस को अगता रक्सा जायगा ।
(३) पौष विदी १० चैत सुदी १३ को अगता रक्खा जायगा ।
(४) जन्माष्टमी, राधाष्टमी, संक्रान्ति, गणेश चौथ को अगता रक्खा जायगा ।
(५) कार्तिक, श्रावण, वैशाख, अलावा पामना परि के इन महिनों में अगता रक्खा जावेगा । ( ६ ) शिकार इरादतन जरूरी के सिवाय नहीं की जावेगी ।
(७) पर्युषण हमेशा निभे जी माफिक निभाया जावेगा ।
(८) एकादशी अमावस्या चड़स हलगाड़ी वगैरा बैलों से जोताई का काम नहीं लिया जावेगा । (e) जो कुछ भी रकम मुनासिव होगा हर माह किसी नेक काम में लगाई जावेगा । - भोपालसिंह बनेड़िया
-
*
॥ श्री लक्ष्मीनाथजी ॥
॥ श्री रामजी ॥
जैन सम्प्रदाय के सुप्रसिद्धवक्ता पं०
मोहर छाप मोही (मेवाड़)
मुनि श्री चौथमलजी महा राज का राजस्थान मोही में आज भाषण हुआ। वह श्रवण कर चित्त बड़ा आनन्दित हुआ । अहिंसा विषयक जो श्री महाराज ने सत्य उपदेश दिया वह प्रभावशाली ही नहीं प्रत्युत प्रशंसनीय एवं उपादेय रहा है। इसलिए नीचे लिखी प्रतिज्ञा की जाती है-
X
•
(१) चैत्र शुक्ला १३ भगवान् श्री महावीर स्वामी का जन्म दिन है सो हमेशा के लिए
आम अगता रहेगा ।
(२) पौष कृष्णा १० भगवान श्री पार्श्वनाथजी का जन्म दिन है सो हमेशा के लिए आम अगता पलाया जावेगा ।
(३) श्रीमान् मुनि श्री चौथमलजी महाराज के पधारने व विहार करने के दिन मोही में आम अगता रहेगा ।
(४) मादा जानवर की शिकार जानकर नहीं की जावेगी ।
(५) कोई पखेरु जानवर की शिकार निज हाथ से नहीं की जायेगी न जीमण में काम आयेगा ।
(६) हरिण की शिकार नहीं की जावेगी, न जीमन में काम आवेगी ।
(७) निज हाथ से कोई जीव हिंसात्मक कर्म नहीं किया जावेगा। अलावा श्रीजी हुजूर हुक्म के ।
ऊपर लिखे मुआफिक पूरे तौर से अमल रहेगा लिहाजा
हुक्म नं० ८२
असल ही कचहरी ठि० हाजा में भेज कर लिखा जाये कि अमूरात मुन्दरजा सदर की पाबन्दी बाबत खटीकान को हिदायत करा देना और नकल इसकी सूचनार्थं भेंट स्वरूप श्री चौथमलजी महाराज की सेवा में भेजी जावे सं० १९८३ वैशाख कृष्णा १५ ता० १ ५ २७ ई०
✡
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org