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| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ८२:
दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज यहां विराजमान हैं।' एक कार रुकी। उसमें एक जर्मन प्रोफेसर था। वह भारत-भ्रमण के लिए आया था। पाव में बैठे भारतीय सज्जन से पूछा-'बोर्ड पर क्या लिखा है ?' उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद करके सुना दिया। जर्मन प्रोफेसर उतरा। भारतीय सज्जन के साथ महाराजश्री के पास पहुँचा। उस समय महाराजश्री का प्रवचन हो रहा था । श्रोतासमूह मन्त्रमुग्ध-सा सुन रहा था। जर्मन प्रोफेसर ने भारतीय सज्जन के माध्यम से जिज्ञासा रखी
"आत्मा है या नहीं ? है तो उसका क्या प्रमाण है ? मुझे थोड़े में ही बता दीजिए, क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूँ।"
_ "क्या इन (जर्मन प्रोफेसर साहब) के पिता जीवित हैं ?-महाराजश्री ने प्रतिप्रश्न किया।
"नहीं, वे जीवित नहीं हैं।" "जब वे जीवित थे तो क्या करते थे ?" "खाने-पीने, बोलने-चालने आदि के सभी काम करते थे।" "आपने कैसे जाना कि वे मर गए हैं ?" । "उनकी ये सब क्रियाएँ बन्द हो गईं।" "शरीर के सारे अंग-उपांगों के ज्यों की त्यों रहने पर भी ये क्रियाएँ बन्द क्यों हो गईं ?" अब जर्मन प्रोफेसर चुप हो गया। वह सोचने लगा । महाराजश्री ने समझाया
"जिसके आदेश से शरीर द्वारा ये सब क्रियाएं हो रही थीं, वही आत्मा है । उसके निकल जाने के बाद शरीर ज्यों का त्यों पड़ा रह जाता है। वह अमूर्त, अविनाशी और अतीन्द्रिय है। उसे इन आँखों से देखा नहीं जा सकता, केवल अनुभव ही किया जा सकता है।"
समाधान पाकर प्रोफेसर सन्तुष्ट हआ। आभार व्यक्त किया
Alright, I understood it. The director of all the activities is the soul or Atman. That is an unseen element. I could not get anyone who ought to have clarified such a serious subject in so a simple way. Thanks.
-बहुत अच्छा, मेरी समझ में आ गया। जो सभी क्रियाओं का संचालक है, वही आत्मा है। वह आत्मा अदृश्य तत्त्व है। मुझे इतने गम्भीर विषय को सीधे-सादे शब्दों में समझाने वाला आज तक कोई नहीं मिला। धन्यवाद !
अपनी जिज्ञासा का उचित समाधान पाकर उस जर्मन प्रोफेसर ने जैन दिवाकरजी महाराज के सम्मुख अपना सिर झुका दिया।
उदयपुर के महाराणा भूपालसिंहजी ने दिल्ली चातुर्मास में आपके दर्शन किए और अगला चातुर्मास उदयपुर में करने की भाव-भरी प्रार्थना भी की। चवालीसा चातुर्मास (सं० १९६६) : उदयपुर
दिल्ली चातुर्मास पूर्ण करके आप अलवर पधारे । जगत टाकीज में प्रवचन हुए। वकील ऐसोसिएशन ने भी प्रवचन कराया। अलवर नरेश श्री तेजसिंहजी प्रवचनों से प्रभावित हुए। उन्होंने जीवदया का पट्टा दिया ।
आपश्री ने उदयपुर में चातुर्मास शुरू किया। आपके प्रवचन सुनकर लोगों ने मदिरापान का त्याग किया। महाराणा भूपालसिंहजी ने सांभर के शिकार का त्याग किया। महाराणा की जिज्ञासा पर एक प्रवचन में आपने रक्षाबन्धन के रहस्य प्रगट किए जिसे सुनकर सभी चकित रह गए।
उदयपुर से विहार करके कई गांवों में होते हुए बड़ी सादड़ी पधारे। उस समय आपके
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